
वाराणसी। आज दिनांक 28.07.2025 – काशी में साहित्य-सृजन की समृद्ध परंपरा के अनेक उदाहरण तुलसी और भारतेंदु से होती हुई आज तक दिखाई दे रहे हैं। श्रंखला में सुशोभित नाम है युवा कवि सुरेन्द्र ‘प्रखर’ का, जिनकी पुस्तक बालापन में ठेठी ललटन की कविताएं आती हैं। इनकी कविताओं में जीवन का यथार्थ, उसकी वस्तुनिष्ठता और अव्यक्त व्यथा को सजीव चित्रात्मकता के साथ प्रस्तुत किया गया है। कवि की कविताओं के अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक के॰ सत्यनारायण ने व्याख्यान में व्यक्त किया। वे नव्यलेखन में रचनात्मक मूल्यों की पुस्तकीयता को लेकर आयोजित संवाद-प्रक्रिया में मुख्य वक्ता थे। उन्होंने कहा कि रचनात्मक लेखन में आज अनेक प्रकार की चुनौतियां हैं जिनसे आमजन, रचनाकार और आलोचक तीनों ही जूझ रहे हैं। उन्होंने अपने व्याख्यान में कहा कि प्रो॰ सुरेन्द्र प्रखर की कविताओं में गांव अधिक के मंच से बोल रही हैं। उन्होंने अपने अनुभवों एवं संवेदनाओं को गहन संवेदना, विचार और ताजगी से पृष्ठ पर उतारा है। उनके पृष्ठों में आलोचना को स्पेस देते हुए कई बार विषय और विचार से टकराने की प्रवृत्ति है। पुस्तक में कुछ रचनाएं ऐसी हैं जो लेखक की आलोचना और सामाजिक सरोकारों को लेकर सजग दृष्टिकोण की प्रस्तुति करती हैं। साथ ही इस पुस्तक में लोकभाषा, लोकस्मृति और पारंपरिक बिंबों का भी सुंदर प्रयोग हुआ है। ग्रामीण संवेदना की अभिव्यक्ति ही इस कविता संग्रह की विशेषता है। पुस्तक की कई रचनाओं में प्रकृति और व्यवहार विभिन्न कोणों से उभरते दिखाई देते हैं, उनकी कविताओं का ग्रामीण परिवेश, शहर की विसंगतियों और मध्यवर्गीय मूल्यबोध से सीधा संबंध है। वे रचना की व्याप्ति और उसकी प्रक्रिया पर गहरी सामाजिक दृष्टि रखते हैं जो उन्हें अलग प्रभाव देती है।
प्रो॰ श्रद्धानंद ने कहा कि कविताओं में सामाजिक पीड़ा विशेषतः नारीत्व एवं आमजन की सोच को रेखांकित करना आज की आवश्यकता है। प्रो॰ सुरेन्द्र प्रखर की कविताएं इसे विस्तार देती हैं। वे जनभावनाओं को ठीक उसी रूप में कविता में चित्रित करते हैं जैसी अनुभूति पाठक को प्राप्त होती है। कविताओं में विषयवस्तु और प्रस्तुति के रूप में नया अंदाज है जो पुरानी रचनाओं की परंपरा से भी जुड़ता है। उनकी कविताओं में विश्वास का स्वर है, कविता सिनेमा नहीं है दृश्यबोध, भावबोध और शब्दबोध उसका मुख्य तत्त्व है। उन्होंने कहा कि ग्रामीण चेतना और लोकचिंतन के आलोक में कविता को देखना आज की जरूरत है। काव्य-संवेदना में किसानों, मजदूरों और निम्नवर्ग की आकांक्षाओं और तनावों को उभारने का प्रयत्न करते हैं। ये सामान्य जीवन की बड़ी कविताएं हैं।
संचालन करते हुए प्रो॰ रामसुधाकर सिंह ने काशी के कथा साहित्य कविता के व्यापक सुजन और आलोचना की परंपरा पर गहरी चर्चा की। सुरेन्द्र प्रखर को आज के अभावादक परिवेश में किसानों, मजदूरों एवं मध्यम वर्ग के जीवन-संघर्ष का मुखर प्रतिनिधि बताया। रचना प्रक्रिया के प्रयास को भी सराहा। उन्होंने नए कथाकारों के उपन्यासों का अनुशीलन करने के प्रति तटस्थ दृष्टि से साधुवाद दिया। कार्यक्रम में डॉ॰ मुक्ता और डॉ॰ शुभ श्रीवास्तव ने भी विचार व्यक्त किए। स्वागत भाषण डॉ॰ दयामणि मिश्र ने दिया। प्रारंभ में सरस्वती वंदना संगीन श्रीवास्तव एवं अंत में धन्यवाद ज्ञापन जिला पुस्तकालयाध्यक्ष कंचन सिंह परिहार ने किया। इस अवसर पर डॉ॰ चंद्रसेन मुसाफिर, संकर्षण नारायण, डॉ॰ तमन्ना, डॉ॰ शुभा श्रीवास्तव, प्रशांत कुमार बघेल, रंजीव सिंह, गोविंद आर्य, सरस्वती चतुर्वेदी, संतोष कुमार प्रीत, बृजेश तिवारी, डॉ॰ नरेन्द्र श्रीवास्तव, देवेंद्र नाथ सिंह, अनिकेत महेंद्र, विजय कुमार त्रिपाठी, राजेश श्रीवास्तव, विनोद कुमार वर्मा, आनन्द कुमार मासूम, देवेंद्र पाण्डेय आदि कई कवि एवं साहित्यकार उपस्थित रहे।