Uncategorized
Trending

आरंभ ।।

आरंभ अंत का प्रथम पग है,आप कैसे अंत के दृष्टा है,
इसके फलांकाक्षी गर आपका ऊंचा आसमान है,
तो निश्चित ही आपका आरंभ, जोश से भरा जोरदार होगा।।

और केवल आरंभ ही नही,सफ़र के हर पग पर,
आरंभ का सा जोश दृष्टिगत होगा,और जब ऐसा है
तो, यकीन मानिए, ,तब,आपका आसमान, आपकी गोदी मे चला आएगा।।

लोग भागते है,पंडित, मौलवियों के पास, तत्पश्चात,
जब ध्येय, आरंभ नही,अंत का प्रतिफल होता है,
गवाया समय आरंभ मे होता है।।
और फिर पछतावा और केवल पछताना, भर होता है, क्योंकि आरंभ बहुत पीछे रह चुका होता है।।

सो हजूर ए आला, यदि चाहते है आप, सफल विश्वास, और वह भी पूर्ण सफलता के साथ, तो आरंभ ऐसा बनाइए कि गूंज उसकी ऐसी हो,कि हर कोई कहे,,

ये नाद का आरंभ है,
हौंसला बुलंद है,
ध्येय भी प्रचंड है,
तुम चल रहे जिस डगर,
उस डगर को सलाह दो।।

कोई आए कही बीच न,
लक्ष्य के समीप न,
तुम्हारे कही करीब न,
कि ऐसी तुम सरल नही,
समर की थाम कमान लो।।

कि अश्व ध्येय तुम्हारे के,
खम ठोकते, किनारे के,
और थके कभी न,हारे से
विचलित कही, न बेचारे से,
लगे हर रात भोर हां,।।

और नींद को अपनी भगा,
भाग्य को लिए जगा,
पग अपनो से राह बना,
चट्टानो को दिए बिछा,
कि कांटे बने फूल से,
छालों को भी लिए छिपा।।

कि रास्ता जमीं नही,
खींची जो वह लकीर रही ,
परिणाम मे सजी धजी,
देखा स्वप्न यकीन वही,
हैं आसमां तुम्हारा वह,
किनारे से बताए दो।।

यही आरंभ अंत का ,
लक्ष्य के अनंत का,
डमरू के नाद दिगन्त का,
लक्ष्य सभी समझाए दो।।

है जीत बस जश्न नही,
मगरूरियत मगर नही,
आसमान के आगे से लगे,
आसमां से और कम नही,
यही तुम्हारी थाह है,
बसी यही तुम बताए दो।।


संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *