
(25 मई आल्हा जयन्ती)
महोबा के चन्देल वंश के,
थे शासक राजा परमाल।
दशपुरवा के जागीरदार थे,
दस्सराज शुभ शोभित भाल।।
दस्सराज के दो बेटे थे,
महोबा नृप सेना रणधीर।
आल्हा-ऊदल नाम जगत में,
था प्रसिद्ध, बाँके दोऊ वीर।।
बच्छराज थे इनके चाचा,
था मलखान अभय अति धीर।
पद्म पाँव में जन्म से उसके,
था, न चले जादू व तीर।।
और सभी के नाम गिनाऊँ,
जो रहते महोबे के दरम्यान।
मन्नी गूजर, मदन गढ़रिया,
ब्रम्हानन्द और सुलखान।।
ताला-सैयद ताऊ थे इनके,
उनने पाला इन्हें छिपाय।
पिता और चाचा मर गये थे,
जब इनका शैशव लहराय।।
राजा जम्बे जो माँडों का,
तिनका पुत्र कड़ंगाराय।
घेर के महोबा, मारा इनको,
साजिश माहिल की थी भाय।।
रानी मल्हना का भाई था माहिल,
ओछी जात बनाफर राय।
जलता था परमाल नृपति से,
था वह चुगल नामि, कहूँ गाय।।
हिन्दू राजा पृथ्वीराज व,
दिल्ली का जयचन्द महान।
थे ये इनके समय में यारों,
हारे, भगे बचाकर प्राण।।
पथरीगढ़, कालिंजर जीते,
वावन गढ़ के नृपति जुझार।
सबको नाकों-कान खबाया,
लोहा, देखें नहीं निहार।।
मनिया देव महोबा वाला,
मैहर मातु शारदा नाम।
रही कृपा आजीवन इनकी,
सुमिरत खड़े दायें व वाम।।
वर्षा ऋतु, सावन महीने में,
चौपालों पर लोग तमाम।
गाते आल्हा बुन्देलखण्ड में,
लोग आज भी कहकर राम।।
यूट्यूब पर सभी लड़ाईं,
सुनिये फिर होवे विश्वास।
बिना सुने नहिं खुले हकीकत,
सुनकर हो पूरण मन आस।।
राजघरानों में ये उपजे,
जैसे जुझारसिंह, हरदौल।
गाँव-नगर में बने चबूतरा,
माने सदा बहन का कौल।।
आल्हा-ऊदल, पृथ्वीराज में,
युद्ध हुए कई बार अनेक।
हारा प्राण बचाकर उसने,
दीन्हें सम्मुख घुटने टेक।।
अगर मित्रता होती इनसे,
थी गौरी की कौन मजाल।
पृथ्वीराज को बनाके बन्दी,
ले जाता, रख गर्दन ढ़ाल।।
कूटनीति व चुगलखोरि का,
होते हरपल रहे शिकार।
आल्हा-ऊदल सदा जीतते,
देखें बाट विदेशी स्यार।।
इसी तरह खा चुगलखोरि वे,
आल्हा-ऊदल से कर रार।
अपनी शक्ति क्षीण करते थे,
नृप भारत के भर अहंकार।।
सत्रह बार मुहम्मद गौरी,
हारा पृथ्वीराज से आन।
अठारहिं बार युद्ध वह जीता,
उसने मन लीन्हा था ठान।।
आल्हा-ऊदल अगर सभी के,
होते मित्र, विदेशी आन।
कबहूँ नहीं यहाँ पग धरते,
खाते वे सब मुँह की मान।।
चुगली सदा हुई भारत में,
ऊदल-मलखे बने शिकार।
लाखन, जागन, ब्रम्हानंद सब,
जैतखम्भ में पाँव पसार।।
सारे हुए निछावर भू-हित,
जननी हित तन दीन्हा त्याग।
अमर नाम इतिहास में इनका,
थे दोऊ वीर महोबे भाग।।
आल्हा-इन्दल यही बचे थे,
ये हैं अमर वीर बलवान।
मैहर नित्य सुबह जाकर के,
करते पूजा, मिलें निशान।।
आल्हा-ऊदल, मलखे-इन्दल,
ब्रम्हा, ढ़ेवा व सुलखान।
वीरसिंह ओरछा नरेश के,
थे हरदौल भक्त उर ज्ञान।।
रानी लक्ष्मीबाई सरीखी,
दुर्गावती वीर गुणवान।
चुगलखोरि में सिगरे खप गये,
थे शहीद असली ये जान।।
जो अपना हित तुमको चहिये,
सुख-सौभाग्य, पदोन्नति यार।
छोड़ो द्वेष-दम्भ, मद सारा,
रहो एक मिलकर, नर-नार।।
घर-घर हो सौन्दर्य, जगत में,
छाये खुशबू सदा बहार।
खुशियों में सबके दिन बीतें,
रहे प्रेममय ये संसार।।
रचना-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)