जाने माने कवि, लेखक, साहित्यकार और सेना से रिटायर्ड डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के व्यक्तिगत साक्षात्कार

जाने माने कवि, लेखक, साहित्यकार और सेना से रिटायर्ड डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’, लखनऊ (उत्तर प्रदेश) के निवासी का डा० गुंडाल विजय कुमार हैदराबाद (तेलंगाना) द्वारा व्यक्तिगत साक्षात्कार
- कृपया अपना संक्षिप्त परिचय दें।
मैं डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र, लखनऊ का निवासी हूँ, लगभग 36 साल सात महीने मैं सेना में सर्विस करके 31 जुलाई 2009 को लेफ्टिनेंट कर्नल के रैंक से रिटायर हुआ था। उसके पश्चात पंद्रह साल तक सैनिक नगर आवासीय जन कल्याण समिति और श्री गणेश सहकारी समिति का अध्यक्ष रहा, और सामाजिक कार्यो से जुड़ा रहा। अब लगभग दो ढाई साल से मैंने समितियों के उत्तरदायित्व को अन्य लोगों को सौंप दिया है और लिखने पढ़ने के कार्य में व्यस्त रहता हूँ।
- आपने सेना में कर्नल के पद तक क्या अनुभव प्राप्त किये।
सेना में रहते हुए अनुशासन और कर्तव्य बोध के साथ देश सेवा का जज्बा, देश भक्ति का जोश, अपने से वरिष्ठ का सम्मान और मातहतों का वेलफेयर, उनका हौसला बढ़ाते रहना, यही प्राथमिकता होती थी।
- देश सेवा और राष्ट्र भक्ति का आपके जीवन में क्या स्थान है?
एक सच्चे सैनिक के जीवन में देश सेवा और राष्ट्र भक्ति सर्वोपरि हैं, आवश्यकता पड़ने पर देश हित में अपना बलिदान देने का जज़्बा होता है।
5.क्या सैन्य अनुशासन ने आपके साहित्यिक जीवन को प्रभावित किया है?
सेना का जीवन अनुशासित होते हुए भी आगे बढ़ने में, पढ़ने लिखने में किसी तरह रुकावट नहीं आती है, बल्कि शैक्षणिक और साहित्यिक उन्नति में प्रोत्साहन मिलता है। मैंने सेना में रहते हुए, स्नातक, स्नातकोत्तर और कंप्यूटर के कोर्स पूरे किये हैं।
- कोई ऐसा विशेष क्षण जो आपके सैनिक जीवन की प्रेरणा बन गया हो?
मैं सन् 1971 में अक्टूबर से दिसंबर तक ढाई महीने पोस्टल ट्रेडिंग सेंटर सहारनपुर में विभागीय प्रशिक्षण प्राप्त कर रहा था, तभी 1971 की लड़ाई शुरू हो गई थी। मैं लड़ाकू विमानों की आवाज सुनता था तभी मैंने निश्चय कर लिया था कि मैं सेना में अवश्य जाऊँगा और मुझे एक साल के अंदर ही यह अवसर मिल गया। 16 दिसंबर 1972 से 31 जुलाई 2009 तक सेना सेवा का जीवन इसी प्रेरणा से प्राप्त हुआ था।
- ‘साहित्य और सैन्य सेवा’- इन दो दिशाओं में आपने संतुलन कैसे साधा?
साहित्य और सेना सेवा साथ साथ चलते रहने में कोई विघ्न बाधा नहीं होती है, जैसा मैंने बताया कि शैक्षणिक और साहित्यिक विकास के लिए पूरा प्रोत्साहन और सहयोग दिया जाता है।
- आपके साहित्यिक लेखन की शुरुआत कैसे हुई?
मैं जब कक्षा सात का विद्यार्थी था तभी मुझे स्कूल में साप्ताहिक बालसभा का मुख्य वक्ता बनने का अवसर मेरे शिक्षकों से मिल रहा था, तभी से मुझे लेखन की प्रेरणा भी मिलने लगी थी। वैसे भी मेरे नजदीकी स्नेही जनों से भी लिखने पढ़ने का प्रोत्साहन मिलता रहता था। शायद मुझमें एक मेधावी विद्यार्थी की योग्यता के आधार पर यह प्रोत्साहन मिलता था।
- आपके अनुसार साहित्य का समाज में क्या योगदान है?
साहित्य समाज का दर्पण है, सकारात्मक और रचनात्मक साहित्य ही समाज को विकास की सही दिशा देता है और सामाजिक ताना बाना उत्तरोत्तर विकास की गति पाता है।
- क्या आपके अनुभवों ने आपकी रचनाओं में देश भक्ति या युद्ध की झलक दी है?
निश्चित रूप से मेरे अनुभव सैनिक जीवन से प्रेरित और प्रभावित हैं, जीवन में 1965, 1971 और कारगिल युद्ध के साथ सेना सेवा के अनुभव मेरी कविताओं में एक निश्चित और प्रभावशाली स्थान पाते हैं।
- आपकी प्रमुख साहित्यिक कृतियाँ कौन सी हैं?
मेरे सात काव्य संग्रह, एक लेख संग्रह और एक सुभाषित संकलन- नौ पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। ये सभी आदित्यायन शृंखला में ही नामित हैं, जैसे आदित्यायन, आदित्यायन अनुभूति, संकल्प, अभिलाषा, सृजन, भुवन राममय, अमृत काल, सुभाषितम और जीवन अमृत। अन्य छ: काव्य संग्रह अभी प्रकाशित होने हैं। लगभग 30 साझा काव्य संग्रह में भी मेरी रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं।
11.साहित्य में आपकी प्रिय विधा (कविता, उपन्यास, निबंध, आत्म कथा आदि) कौन सी है और क्यों?
साहित्य में मेरी रुचि कविता पर विशेष रूप से आधारित है, निबंध, आत्मकथा आदि पर भी लिखता रहता हूँ। मुझे काव्य रचना रुचिकर प्रतीत होती है।
- सनातन धर्म के प्रति आपकी आस्था कैसे जागृत हुई?
सनातन धर्म एक शाश्वत संस्कृति है, बचपन से इसमें मुझे सुरुचि रही है, शायद ब्राह्मण कुल में जन्म लेना भी इसके प्रति समर्पण का भाव प्रदान करता है।
- आपकी दृष्टि में भक्ति का वास्तविक अर्थ क्या है?
मेरी दृष्टि में भक्ति का भाव प्रेम है, फिर चाहे वह परमात्मा की भक्ति हो या प्राणिमात्र की।
भक्ति प्रेम है और प्रेम ही भक्ति है।
- क्या आपकी रचनाओं में भक्ति का तत्व विद्यमान है?
मेरी रचनाओं में भक्ति, प्रेम, आस्था, विश्वास, परहित, सामाजिक सुधार जैसे आदि सभी तत्व शामिल होते हुये भी देश सेवा और राष्ट्र के लिए समर्पण की भावना का समावेश होता है।
- आप किस देवी देवता के उपासक हैं और क्यों?
ईश्वर एक है, सभी देवी देवता उसी परमपिता परमात्मा के विभिन्न रूप और स्वरूप हैं, श्री कृष्ण ने गीता में कहा है ‘एकोहम
द्वितीयोनास्ति’, यही सत्य है, वैसे तो तैंतीस कोटि के देवी देवता इस ब्रह्मांड में मौजूद हैं, मेरी इस तथ्य में आस्था है।
- क्या आप मानते हैं कि राष्ट्र भक्ति, धर्म और साहित्य एक दूसरे के पूरक हैं?
सनातन परंपरा में राष्ट्र भक्ति, धर्म व्यक्ति के जीवन में संस्कार देते हैं और साहित्य इन सिद्धांतों और संस्कृति को आगे बढ़ाने में योगदान करता है, निश्चय ही यह एक दूसरे के पूरक हैं।
- आप अपने अनुभवों से सनातन धर्म और देश भक्ति को कैसे जोड़ते हैं?
सनातन धर्म और देश भक्ति हमारे जीवन की, हमारे देश की सांस्कृतिक विरासत हैं, धरोहर हैं, इनके प्रति मेरा मानना है कि इन्हें निरंतर जीवन के सिद्धांत मानकर इन पर अमल करना चाहिए।
- क्या आपने धर्म और संस्कृति के प्रचार- प्रसार हेतु किसी मंच/ संगठन के साथ कार्य किया है?
धर्म और संस्कृति के प्रचार प्रसार के लिये मैं किसी संगठन या संस्था से जुड़ा नहीं हूँ, परंतु श्री जन कल्याणेश्वर महादेव मंदिर का संस्थापक अध्यक्ष हूँ और वहीं से इस कार्य को आगे बढ़ाने का प्रयास पिछले पंद्रह सालों से करता रहा हूँ।
- आपके अनुसार एक लेखक की समाज के प्रति क्या ज़िम्मेदारी है?
कवि, लेखक, साहित्यकार अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को सही मार्ग दर्शन देने का उत्तरदायित्व निभाते हैं।समाज को सही दिशा प्रदान करते हैं।
- एक आदर्श नागरिक और भक्त का स्वरूप कैसा होना चाहिये?
आदर्श नागरिक देश के प्रति संविधान के कानून के पालन का निर्वहन करते हुए, देश भक्ति और संस्कृति की रक्षा के लिये सदैव तत्पर रहता है।
- आपकी दिनचर्या में भक्ति, लेखन और सेवा का स्थान कैसे निर्धारित है?
ब्रह्म मुहूर्त में सो कर उठना, प्रात: काल शारीरिक सौष्ठव के लिए सैर, व्यायाम, प्राणायाम, स्नान ध्यान पूजा, भोजन के साथ ही आठ नौ घंटे का समय साहित्य सृजन और इसके प्रचार प्रसार के लिये निर्धारित रखता हूँ।
- आपके लिये धर्म, कर्तव्य और कला के व्यक्तिगत अर्थ क्या हैं?
‘धर्म इति धारयेत’, धर्म जो धारण करने योग्य हो, कर्तव्य सदैव सही, सत्य की राह ले जाते हों और कला जिससे व्यक्तिगत आत्म सुख और सामाजिक सुख शांति में सहायता प्राप्त हो।
- आज के भारत में सनातन साहित्य को आप किस दिशा में बढ़ते हुए देख रहे हैं?
भारत में सनातन साहित्य की विशाल विरासत है, भण्डार भरे पूरे हैं, आज इस साहित्य पर निरंतर अध्ययन और शोध हो रहे हैं, जो भारत को विश्व गुरु बनाने की सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
- आप आने वाले समय में क्या साहित्यिक/धार्मिक योजनाएँ रखते हैं?
जहाँ तक साहित्यिक सृजन की बात है मेरी छ: पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार हैं और यह क्रमश आगे बढ़ता रहेगा। धार्मिक आस्था और विश्वास हमेशा बनाये रखना है और इसमें सबकी रुचि जागृत करते रहना है।
- एक वाक्य में:
मैं कौन हूँ और मेरा उद्देश्य क्या है?
मैं डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र ‘आदित्य’ एक 76 वर्षीय रिटायर्ड सैनिक, साहित्यकार, कवि और लेखक हूँ। मेरा मानना है कि प्रयास हमें बहुत कुछ सिखा देते हैं। मानव जीवन में प्रयास, अभ्यास और अध्ययन का बहुत महत्व पूर्ण स्थान होता है, तो आइये क्यों न हम सब निरंतर प्रयास, अभ्यास और अध्ययन करते रहें।
धन्यवाद, जय हिंद, जय भारत, वन्दे मातरम्।