
जन्मेजय ने वचन लिया था,
करुंगा पृथ्वी सर्प विहीन।
अपने पिता का बदला लूंगा
हवन करुंगा मैं दिन रैन।।
यज्ञ के मंत्रों के प्रभाव से
नाग स्वयं ही आते थे
अपनी प्राणों की आहुति दे
हवन कुंड में गिरते थे।।
सावन मास पंचमी तिथि थी,
आस्तिक मुनि ने कृपा करी
रोका मंत्र कुछ समय को तो
तक्षक नाग की जान बची।।
हवन कुंड की तीक्ष्ण तपन से
प्राण बचाने के खातिर,
डाला ठंडा दूध ऋषि ने
बचे प्राण तक्षक के।
दूध डालने की परंपरा
शुरू हुई फिर तब से,
पूजन करके दूध डालकर
मन में हर्षित होते।।
जीवन रक्षा हुयी नागों की
हुई ना पृथ्वी सर्प बिहीन
इसी खुशी में सभी मानते
नाग पंचमी पर्व हसीन।।
स्वरचित मौलिक
पुष्पा पाठक छतरपुर मध्य प्रदेश