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“आज फिर लगा”

स्मृतियां बीते लम्हों की!
मानस पटल पर छाई हैं।
एक प्यार भरे स्पर्श से वो!
धुंधली सी यादें उभर आई हैं।

यूं तो भूलना था मुश्किल!
पर, कुछ बीते वक्त का पर्दा है।
स्नेह भरा स्पर्श मिला जब !
उन यादों का असर कुछ ज्यादा है।

हां, भैया के स्नेह भरे हाथों ने!
माथे को जब मेरे छुआ।
याद दिला दी पापा के स्पर्श की !
अंतर्मन तक एहसास हुआ।

हां ! आज फिर लगा कि…

पापा की गोदी में बैठी !
वो, नन्ही सी गुड़िया मै।
नटखट हर बात को दोहराती !
अपनी जिद को मनवाती मै।

स्वरचित :- उर्मिला ढौंडियाल’उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)

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