
(स्वरचित दोहे)
अनल-आरती दीप में, जगमग भाव अपार।
भक्ति-ज्योति से जागता, अन्तर का संसार॥1॥
हवन-कुण्ड में दे समर्पण, द्वेष-हिंसा-ताप।
अहं जलाकर प्रेम दो, बनो स्नेह-प्रिताप॥2॥
अनल परीक्षा काल की, हरता पाप अघोर।
धैर्य-धरा जो तज तृषा, पावे पुण्य विभोर॥3॥
सृजन-हरण की शक्ति है, अग्नि-स्वरूप महान।
संयम साधक साध ले, हो उज्ज्वल अनुमान॥4॥
अग्नि सिखाती सम दृष्टि, देती सत्य प्राण।
चमको प्रेम से ज्योति बन, मिटे सकल त्राण॥5॥
योगेश गहतोड़ी