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रास्ता कोई हो

जिंदगी तो एक बड़ा सा फसाना है
कब किसने यहां से गुजर जाना है
इन्सान अब भी इससे अनजाना है
लेकर नही किसी ने कुछ जाना है

सब जानते यह बात सच में सत्य है
उपदेश सुनने को नहीं थोड़ा वक्त है
धन दौलत कमाने के लिए हर मस्त है
रास्ता कोई हो ,मेरा अभी यह वख्त है

लोग भूल जायेंगे तुम्हें हटते ही कुर्सी
लूट लो जब तक है तुम्हारे पास कुर्सी
अच्छा नहीं लगता तुम्हें कुछ बिन कुर्सी
लोग कर देते गद्दारी लेने के लिए कुर्सी

तुम तो सिर्फ एक ही हो यहाँ ईमानदार
खून की हर बूँद में भरे हैं लाखों गद्दार
कितनों से तुम अकेले टकराओगे यार
कौन हो तुम ?झेलते दुश्मनों हर वार

दुनियां में आ के जाने कितने चले गए
गद्दारियों से पूरा कुछ इतिहास भर गये
बेगाने लोग रोते सिर्फ दिखाने के लिए
भूल जाते हैं आज उन्हें जमाने के लिए

डॉ . कृष्ण कान्त भट्ट
एस वी पी सी बैंगलुरू
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित रचना

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