
- जन्म-जन्म की बात साधारण नहीं, ये आत्मा की अनदेखी यात्रा है।
- शरीर बदलते हैं, नाम बदलते हैं, पर आत्मा का अनुभव साथ रहता है।
- हम कभी प्रेम बनकर मिलते हैं, कभी कर्ज़ बनकर, कभी शत्रु बनकर कर्म चुकाते हैं।
- कभी कोई अजनबी भी जाना-पहचाना लगता है — शायद वो पिछले जन्म की पहचान हो।
- माँ-बेटा, पति-पत्नी, गुरु-शिष्य — ये सब पुराने आत्मिक संबंध हैं।
- कुछ रिश्ते अधूरे रह जाते हैं, इसलिए वे फिर से जन्म लेते हैं।
- पहली नज़र में ही किसी से अपनापन क्यों लगता है? — यही तो जन्म-जन्म की स्मृति है।
- हम कर्मों की डोर से बंधे हुए, जब तक मुक्ति नहीं होगी, बार-बार जन्म लेते रहते हैं।
- हर जन्म आत्मा के विकास का एक नया अवसर होता है।
- इसलिए जीवन को केवल एक जन्म की कहानी मत समझो — ये जन्म-जन्म की बात है।
- कोई हमें रास्ता दिखाता है, तो कभी हम किसी और के सहारे बनते हैं, यही जन्म-जन्म का लेन-देन है।
- कुछ दुःख बिना वजह क्यों मिलते हैं? शायद कोई पुराना हिसाब बाकी हो।
- अगर प्रेम सच्चा हो, तो जन्मों की दूरी भी उसे नहीं रोक सकती।
- अधूरी बातें, अधूरे वादे — शायद अगले जन्म में पूरे होने को प्रतीक्षित हैं।
- जो चला गया, उसकी यादें क्यों साथ रहती हैं? — क्योंकि रिश्ता इस जन्म का नहीं, कई युगों का है।
- आत्मा की यात्रा प्रेम, पीड़ा और प्रायश्चित से होकर गुजरती है।
- शायद किसी और जन्म में, नफरत भी एक दिन प्रेम में बदल सकती है।
- इस जन्म-जन्म की लीला को मन नहीं, हृदय ही समझ सकता है।
- हर कहानी अधूरी है, जब तक आत्मा अपना सत्य न पा ले।
- जब आत्मा पूर्ण हो जाती है, तभी जन्म-जन्म की बात रुकती है।
- किसी की आँखों में अतीत की परछाईं दिखती है, जैसे कोई भूली स्मृति फिर जाग गई हो।
- जीवन सिर्फ घटनाओं का मेल नहीं, ये जन्म-जन्म के भावों की पुनरावृत्ति है।
- कोई भी मिलना संयोग नहीं होता, वह नियति द्वारा तय किया गया होता है।
- वही आत्मा बार-बार लौटती है, जिसकी कहानी अभी अधूरी होती है।
- जिन दु:खों से हम भागते हैं, वे ही हमें आत्मबोध की ओर ले जाते हैं।
- हर जन्म कुछ नया सिखाने आता है — खुद को, संबंधों को, जीवन को।
- जब तक भीतर की उलझनें शांत नहीं होतीं, आत्मा की यात्रा चलती रहती है।
- हर अनुभव में पूर्व जन्मों के कर्मों की कोई झलक होती है।
- जो लोग मिलते हैं, वे कुछ देकर जाते हैं, चाहे प्रेम हो या सबक।
- और जो बिछड़ते हैं, वे शायद फिर मिलने आएंगे — किसी नए जन्म में।
- कुछ रिश्ते आत्मा में ऐसे बस जाते हैं, जैसे वे समय से परे हों।
- इसलिए बिछड़ने को अंत मत समझो, वह किसी नए मिलन की शुरुआत हो सकता है।
- आत्मा की पूर्णता मुक्ति में नहीं, बल्कि स्वीकार और समझ में है।
- जब आत्मा स्वयं को जान लेती है, तब जन्मों की कहानी मौन हो जाती है।
- फिर न कोई शिकायत रहती है, न कोई अधूरापन — बस एक गहरा संतुलन।
- यही संतुलन है, जहाँ जन्म-जन्म की बात समाप्त होकर मौन में विलीन हो जाती है।
- हर जन्म आत्मा के लिए एक नई भूमिका और कहानी लेकर आता है।
- नाटक वही है, मंच वही है, बस पात्र और परिदृश्य बदलते हैं।
- आज जो शत्रु है, वह कभी प्रिय मित्र रहा होगा, इसलिए द्वेष में भी करुणा हो सकती है।
- जो पराया लगता है, वह आत्मा का हिस्सा बन सकता है, यह चक्र चलता रहता है।
- जब हम क्षमा करना सीखते हैं, तब हम इस चक्र से ऊपर उठने लगते हैं।
- आत्मा का लक्ष्य केवल जन्म लेना नहीं, अपने मूल स्वरूप को पहचानना है।
- जो मिलते हैं, वे केवल साथी नहीं, वे आत्मा के दर्पण भी होते हैं।
- हर संबंध आत्मा के भीतर कोई नया द्वार खोलता है।
- हर प्रेम और हर पीड़ा आत्मा को उसके सत्य के करीब लाती है।
- इसलिए हर रिश्ते को मान दो, वह केवल इस जीवन का नहीं, कई जन्मों का हिस्सा है।
- हर क्षण को जागरूक होकर जीओ, शायद यही वो क्षण है, जो जन्मों से प्रतीक्षित था।
- सच्चा प्रेम, गहरी अनुभूति और निर्विकल्प क्षमा ही आत्मा की मुक्ति की कुंजी है।
- जब ये कुंजी मिलती है, तब जीवन, मृत्यु और पुनर्जन्म की सीमाएँ समाप्त हो जाती हैं।
- तब हमें सच्चे अर्थों में समझ आता है कि यही जन्म-जन्म की बात थी।
योगेश गहतोड़ी