
रहता है अक्सर आना जाना
तुम्हारा ! मेरे ख्यालों में।
मिल जाते हैं मेरे सवालों के
जवाब बस तेरे आने से।
डराती थी तनहाइयां मुझको अक्सर
नींद का आना भी हुआ था दुष्कर ।
पास आना तेरा धीरे से यूं और
माथे को धीरे चूमना झुक कर।
बिन तेरे लगता था अधूरापन
रूह को अब मेरी मिल गया सुकून।
जगमगाहट चांद तारों की भी बढ़ने लगी
और विभावरी भी उतारू करने जागरण।
चांदनी भी उतावली उतर आई
आज चांद के आगोश से ।
दे रहे गवाही मिलन की ताकते
एक -दूजे को दोनों खामोश से।
लह- लहा रही पत्तियां
जैसे गुनगुना रही हैं।
हवा भी तेरे मेरे मिलन के
गीत जैसे गा रही है।
बीत जाए ना ये पल, ये रात !
भोर की आहट अब मुझे डरा रही है।
बीत रही है निशा अंतिम पहर में!
चांदनी भी चांद में समा रही है।
उर्मिला ढौंडियाल’उर्मि’
देहरादून (उत्तराखंड)