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नीरदोष ज़िन्दगी

अगर मंज़िल मिल जाए सफ़र में ही,
सोचो अगर ऐसा हो तो क्या होगा।
मुसाफ़िर अगर खुद बन जाए रास्ता ,
आदमी इंसान बन जाए तो क्या होगा ।।

काफ़िला काफ़ी हैं मशहूर होने के लिए,
पथ ठहर जाए कही पथ पर ही ।
अगर आदमी खो जाएं डगर में ही ,
बाट में ही बात जाएं तो क्या होगा।।

सुनसान मार्ग में अगर मार्ग मिल जाएं,
तुम भूखे हो और आहार मिल जाएं ।
बेरंग सी जीवन में कोई रंग भर जाए ,
सोचो अगर ऐसा हो जाए तो क्या होगा ।।

डूबते जीवन को पटवार मिल जाएं ,
कोई अजनबी ख़ेबन हार मिल जाएं ।
रंजिशो ग़म में लिपटा बेवफ़ा जिंदगी को
सोचो अगर आखिरी साम मिल जाएं ।।
धड़ कही पड़ा हो बेजान सड़क पर,
और कोई अपना पास से गुजर जाए।
सोचो अगर ऐसा हो तो क्या होगा,

क्या पाया क्या खोया क्या मिल गया ,
क्या हिसाब लगाओगे उस पल ।
तो लगा लेना एक कफ़न नौ मन लकड़ी ।
और चार गज ज़मीन ,
थोड़ा सा गंगा जल जरा सा घी।।
कपूर अगर बत्ती और जुटा सको तो ,
जुटा लेना थोड़ा (निस्वार्थ) भीड़।।
तुमने तो उम्र गुजर दी ख़रीद फ़रोस में भाग दौड़ में माप तौल में और हो सके तो थोड़ा खरीद लेना निश्छल नीर।।
मगर सोच लेना अगर नहीं कर पाया ।
अड़ियल इंसान तो फ़िर तेरा क्या होगा।।

आर एस लॉस्टम
लखनऊ

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