
नीला-नीला आसमान था,
सूरज भी मुस्करा रहा था।
पिंजरे में इक परी थी प्यारी,
सबकी थी वह, प्यारी दुलारी।
गुलाबी ड्रेस, सफ़ेद थे पंख,
मन में उसके उड़ने का रंग।
सपनों की थी वो एक रानी,
पर पिंजरे में कैद थी कहानी।
एक सुबह किरण मुस्काई,
चाबी बनकर पास जो आई।
पिंजरा तब अचानक खुल गया,
गुलपरी का डर चल दिया।
फड़फड़ाए नाज़ुक पंख,
उड़ी वो नभ के सुंदर अंक।
हवा ने उसको गीत सुनाए,
बादल ताली बजाते जाए।
तितली बोली – “आ गई तू!”
फूलों ने भी खुशबू दी खूब।
चिड़ियाँ चहकीं, पेड़ हँसे,
धरती-गगन सब गीत गाए।
अब न रोती, न डरती है,
हर बच्चे को हँसाती है।
सपनों की बन रानी नई,
गुलपरी की ये उड़ान नई।
योगेश गहतोड़ी