
मानव जीवन बड़ी तपस्या के बाद मिलता है। चौरासी लाख योनियों के भ्रमण के बाद दुर्लभ मनुष्य देह प्राप्त होती है। मानव जीवन अपने चरम उत्कर्ष पर आसीन होकर ही पूर्ण होता है। इस हेतु भौतिक जगत में मनुष्य अपनी प्रेरक शक्ति और उससे प्राप्त मार्गदर्शन के आधार पर ही आगे बढ़ता है और अपने जीवन में प्रगति करता है। अतः अपने भीतर विद्यमान ईश्वरीय शक्ति को पुष्पित, पल्लवित और पोषित करना ही हमारा परम ध्येय होना चाहिए। अपने लिए उत्कृष्ट भाव धरातल और सार्थक मानसिक क्षमता का चयन ही हमें सफलता के शिखर पर आसीन कर देता है। इन प्रयासों से ही हमारी सात्विक और उच्च प्रवृत्तियां पुष्ट होती हैं। इन शक्तियों का सर्वांगीण विकास ही हमें सफलता और सम्मान दिलाता है। अपनी क्षमताओं पर और अपने सामर्थ्य पर विश्वास करना ही आत्मविश्वास है। अपने स्व को समृद्ध करना ही हमारा आत्मसम्मान है। आत्मसम्मान से जीवन की हर खुशी को अनुभव करना एक नया ही उत्साह देता है। अतः यथासंभव प्रयास से आत्मगौरव को नयी ऊंचाई और सर्वोच्च शिखर पर आसीन करना ही हमारा जीवन का परम कर्तव्य होना चाहिए।
संध्या दीक्षित