
ना तेज़ हवा, ना रुत जवाँ,
ये वक़्त की अल्हड़पंती है।
ना फूल खिला, ना बाग सजा,
ये सावन की मटरगश्ती है।
ना कीचड़ है, ना कादो कहीं,
ये बस मौसम की मन मस्ती है।
ना धान पके हैं, ना मूँगफली ही,
ये समय की आवारापंती है।
ना रात जवाँ, ना दिन हसीन,
ये दीवानों की कश्ती है।
ना तू मिली, नहीं मैं मिला,
फिर बिछड़ने की क्या जल्दी है?
ना बैरन की, ना बैरी की,
ये मनमौजों की मनमर्जी है।
ना तेज़ हवा, ना रुत जवाँ,
ये वक़्त की अल्हड़पंती है।
आर एस लॉस्टम
लखनऊ