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मोबाइल: जरूरत या अभिशाप?


(स्वरचित आलेख)

आज के तकनीकी युग में मोबाइल फोन हमारे जीवन का एक अनिवार्य हिस्सा बन चुका है। यह एक ऐसा उपकरण है जो न केवल संचार का माध्यम है, बल्कि जानकारी, मनोरंजन, शिक्षा, व्यवसाय, स्वास्थ्य और सामाजिक जुड़ाव जैसे अनेक क्षेत्रों में हमारी सहायता करता है, लेकिन जैसे हर सिक्के के दो पहलू होते हैं, वैसे ही मोबाइल भी अपने साथ कई समस्याएँ और चुनौतियां लेकर भी आया है। ऐसे में यह प्रश्न उठता है कि — “मोबाइल आज के समय में एक जरूरत है या अभिशाप?”

मोबाइल – एक वरदान के रूप में:
मोबाइल फोन ने दुनिया को हमारी हथेली में समेट दिया है। आज किसी से बात करना हो, कुछ खरीदना हो, टिकट बुक करना हो, डॉक्टर से परामर्श लेना हो या फिर ऑनलाइन कक्षा में भाग लेना हो तो सब कुछ मोबाइल से संभव है।

ग्रामीण क्षेत्रों में भी मोबाइल ने सूचना और जागरूकता का द्वार खोला है। किसानों को मौसम की जानकारी, विद्यार्थियों को ऑनलाइन अध्ययन सामग्री और बेरोजगारों को रोजगार संबंधी अपडेट मोबाइल के माध्यम से मिलते हैं। आपातकालीन स्थितियों में भी मोबाइल जीवन रक्षक बन जाता है।
व्यापार की दृष्टि से देखें, तो मोबाइल ने ई-कॉमर्स, ऑनलाइन बैंकिंग, डिजिटल भुगतान और ग्राहक सेवा को नई ऊँचाइयाँ दी हैं। लॉकडाउन जैसे संकट काल में मोबाइल ने शिक्षा और रोजगार को जारी रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

मोबाइल – एक अभिशाप के रूप में:
जहाँ मोबाइल ने जीवन को सरल और सुगम बनाया है, वहीं इसके “अति प्रयोग* ने अनेक सामाजिक और मानसिक समस्याओं को जन्म दिया है। युवाओं की पीढ़ी सबसे अधिक प्रभावित हो रही है। आज युवा पढ़ाई, खेल और सामाजिक मेलजोल से दूर होकर मोबाइल की स्क्रीन में उलझ गए हैं। सोशल मीडिया, गेमिंग और वीडियो कंटेंट के अत्यधिक प्रयोग से एकाग्रता की कमी, तनाव, नींद की गड़बड़ी और आंखों की समस्या आम हो गई है।

मोबाइल के कारण पारिवारिक संवाद में भी कमी आई है। लोग एक ही छत के नीचे रहकर भी एक-दूसरे से संवाद नहीं करते, बल्कि मोबाइल में व्यस्त रहते हैं।
इसके अतिरिक्त, साइबर अपराध, ऑनलाइन धोखाधड़ी, फेक न्यूज और अश्लील सामग्री की आसान उपलब्धता भी इसे एक सामाजिक अभिशाप बना देती है।

मोबाइल न तो पूरी तरह वरदान है और न ही पूर्णतया अभिशाप। यह हमारे उपयोग और व्यवहार पर निर्भर करता है कि हम इसे अपनी प्रगति का साधन बनाते हैं या विनाश का कारण। यदि हम मोबाइल का संतुलित उपयोग करें, समय प्रबंधन करें और नैतिकता व मर्यादा का पालन करें, तो यह निश्चित रूप से एक जरूरी और लाभकारी उपकरण बन सकता है।

श्लोक:
यदि युक्तं प्रयुङ्क्ते जनः मोबाइलं सदा।
भवति तस्य जीवनं, सुखमयम् विनाऽनया॥
अन्यथा यदि तदस्य, भवति दुःखहेतुकम्।
तस्मात् मोबाइलं नित्यं, योज्यं बुद्धिपूर्वकम्॥

अर्थ: यदि मनुष्य मोबाइल का उपयोग संयम और विवेक से करता है, तो उसका जीवन सुखमय होता है। परंतु यदि वह इसका दुरुपयोग करता है, तो यही मोबाइल दुःख का कारण बन जाता है। इसलिए मोबाइल का प्रयोग सदैव बुद्धिपूर्वक और सीमित रूप से करना चाहिए।

कविता:
मोबाइल युग की पहचान,
सही प्रयोग बने वरदान।
अति प्रयोग करें जो जन,
*जीवन में भर दे तूफान। **

सीमित हो उपयोग सदा,
बने ज्ञान का सहज द्वार।
विवेक से चलें हम सब,
सुख-शांति रहे घर-द्वार।

“इसलिए मोबाइल हमारी जरूरत भी है और कभी- कभी अभिशाप भी, फर्क इस बात से पड़ता है कि हम इसका इस्तेमाल कैसे करते हैं।”

योगेश गहतोड़ी

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