
जीवन है तो ख्वाब होना भी लाजमी है। पल पल पर आगे बढ़ने की चाहत ख्वाब ही देते हैं। सपनों के बिना तो शीशमहल भी अधूरे हैं। अपनों के बिना घर घर नहीं ईंट और पत्थर के मुकाम हैं।
ख्वाब सभी पूरे हों जरूरी तो नहीं। सुरखाब के पर सबके पास हों जरूरी तो नहीं। हर सफर की मंजिल हो जरूरी तो नहीं।
साहब ! यह ख्वाब हैं, ख्वाहिशें हैं।
कोई सामानों की फेहरिस्त नहीं।।
जो गए और उठा कर ले आए
बाजार।
अरे ! यह ख्वाब हैं
जो खुली आंखों से देखे जाते हैं,
और
नींद के जनाजे पर मयस्सर होते हैं,
इन की शय पर उम्र बीत जाती है।
सदियां गुज़र जाती हैं
जनाब !
संध्या दीक्षित