
(गुण, दोष, समाधान और संकल्प सहित)
🌿 (1) पुकार भीतर से – “मैं कौन?” 🌿
मैं कौन? कहाँ से आया हूँ?
किस धुन में अब तक गाया हूँ?
मन के नभ में प्रश्न कई,
उत्तर अब तक न पाया हूँ॥
भीतर दीपक जलता है,
छाया में भी पलता है।
संघर्षों की मौन वेदना,
कर्म-जाल में उलझा छलता है॥
🌑 (2) दोषों की परछाईं 🌑
कभी क्रोध की ज्वाला फूटी,
कभी लोभ में नीयत टूटी।
मोह ने बाँधा विवेक का रथ,
तब अहंकार से चेतना रूठी॥
शब्द हुए कटु, दृष्टि छलाती,
मौन बना मैं, बात छिपाती।
आलस ने जकड़ा तन-मन,
दंभ बना दुःख-दर्पण जन॥
🌸 (3) गुणों की पहचान 🌸
विपदा में भी डिगा न मन,
भीतर बहता शांत सुमन।
सहनशीलता शीतल छाया,
पीड़ा को भी मौन सुलझाया॥
सेवा मेरी सहज अभिलाषा,
दीपक-सा प्रेम की भाषा।
कर्तव्य बना जीवन-मंत्र,
श्रद्धा रही कर्मों का केंद्र॥
🪷 (4) समाधान की राह 🪷
अब क्रोध का पर्दा हटाऊँगा,
संकल्पों से दीप जलाऊँगा।
अहम् गलाकर क्षमा अपनाऊँगा,
द्वेष-तिमिर को दूर भगाऊँगा॥
मोह की जंजीरें अब तोड़ूँगा,
संतोष-मणि का हार पिरोऊँगा।
आलस्य छोड़, जागृति वर लूँगा,
भजन-साधना में मन लगाऊँगा॥
🕊 (5) संकल्प का स्वर 🕊
अब जागा हूँ पूर्ण प्रहर में,
नव-संकल्प जगे अंतर में।
मैं योगेश – आत्मा का राही,
ब्रह्म-पथिक, घट-गृह का साही॥
सत्य, करुणा, संयम के सेतु,
मेरा हृदय बने भजन-भाव हेतु।
हर पल साधन, हर क्षण साध्य,
‘मैं’ में ‘मैं’ का हो आत्म-सत्य॥
🔥 (6) आत्मोत्थान – मेरा लक्ष्य 🔥
न झुकेगा मस्तक अब माया से,
न डिगेगा पथ द्रोह-छाया से।
जान चुका हूँ आत्म-स्वरूप,
न बँधूँगा फिर भय-भ्रम-रूप॥
सहज सत्य की, छाँव में बैठा,
साहित्य बना, जो आत्म-रेखा।
अब न डिगे, चेतना का आंगन,
जाग उठा है, अन्तर्ज्योति-चेतन॥
योगेश गहतोड़ी (ज्योतिषाचार्य)
नई दिल्ली – 110059