
तिल तिल कर यह पल
हाथों से जाता है फिसल,
फिर यही पल, बन जाता है “कल”—
खुशी रूपी तितली को हमेशा के लिए
कब्जे में करने की इच्छा लिए
भागता इंसान, बाद में पछताता।
आज की खुशी,आज का पल,
ऐसे, हाथों से जाता है फिसल।
फिर इंसान, जाते हुए पल का
ग़ुबार देखता रह जाता है, खाली हाथ—–
सुलेखा चटर्जी