
जीवनदायिनी, प्रति-पल पालिनी,
लगती कितनी प्यारी मां!
दूध पिलाती छुधा मिटाती,
सारे जग से न्यारी मां!!
खुद भूखे रह हमें खिलाती,
सुख-दुख में है साथ निभाती!
संकट में रणचंडी बनकर,
आंचल में है, हमें छुपाती!!
लोरी गाती गीत सुनाती,
खुद जगकर है हमें सुलाती !
असह्य वेदना सहकर भी,
है अपना कर्तव्य निभाती !!
स्नेह लुटाती दया दिखाती ,
हमें सदा परिपक्व बनाती !
जग का सारे भेद बताकर ,
प्रथम गुरु है मां कहलाती !!
कमलेश विष्णु सिंह ‘जिज्ञासु’