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विडंबना


चर्चा सरेआम हो रही है, भइया कच्चे आम हो रहे हैं,
खट्टी-मीठी, तीखी-फीकी बातों से जनता को बहला रहे हैं।

लगता है कहीं चुनाव आने वाले हैं क्या?
क्योंकि भइया इन दिनों इमली और अनार हो रहे हैं।

गांव-गांव में दौरा कर रहे हैं,
आधी-टेढ़ी पगडंडियों से होते हुए
पूरे बाज़ार में घूम रहे हैं।
पिता के पुराने रास्ते पर चल रहे हैं,
राज्य को पकाकर बाँटने की बातें कर रहे हैं।

लेकिन पीछे पर्दे में कुछ और ही खेल चल रहा है —
आतंकी फिर से लौटेंगे,
भूमियाँ फिर से लूटी जाएँगी,
जनता एक बार फिर से टूटेगी।

गोलियाँ फिर गूंजेंगी,
निर्दोष फिर से काटे जाएँगे,
और हम दो, चार या सौ टुकड़ों में बाँटे जाएँगे।

क्योंकि भइया अब रंगदार हो गए हैं,
जो पहले कच्चे आम थे —
अब राजनीति के पके स्वाद में ढल गए हैं।
आर एस लॉस्टम
लखनऊ

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