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क्यों है…

क्यों हैं
जुगनुओं के शहर में
अंधेरा-सा क्यों है?

रात सुनसान,
मगर सबेरा-सा क्यों है?

दिन की दहलीज़ पे
दम तोड़ता शाम,
जिधर देखो
उधर भूतों का डेरा-सा क्यों है?

आदमी, आदमियत से दूर,
इतना दूर-सा क्यों है?

हर गली खामोश,
चौपाल चुपचाप-सा क्यों है?

गांव गुमनाम,
शहर परेशान-सा क्यों है?

अम्मा की लोरी,
दादी की दूध की कटोरी,
नानी की चटपटी, खट्टी-मीठी स्टोरी,
दादा के हाथों में
नन्हा-सा हाथ,
नाना के फिर से
घर आने की आस —

आज मन में
अजीब-सी उदासी-सा क्यों है?

ऊंची-ऊंची इमारतें,
आसमान को छूतीं,
सुख-सुविधाओं से भरपूर,
लेकिन इसमें
सोंधी मिट्टी की कमी-सी क्यों है?

आर एस लॉस्टम
लखनऊ

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