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भजन

भजन है मानव चेतना का, अमृत-सा मधुर उजियारा,
जो मन को जोड़ प्रभु से, रचता प्रेम की अनुपम धारा।
बिन भोजन भजन न होई, जैसे तन को अन्न सहारा,
वैसे ही आत्मा को भजन से, मिलता है सुख सारा।

भजन — परम ब्रह्म से मिलने का पावन, निर्मल पुल है,
जहाँ मिलन में खोकर साधक, पाता शांति का मूल है।
अभ्यास से ही खुलते हैं, प्रेम, शांति और मोक्ष के द्वार,
भजन बने जब जीवन-धारा, मिटे दुखों का सब भार।

भजन जगाता चेतना की, सुप्त पड़ी गहराई,
जहाँ न लोभ, न मोह, न कोई अंतर की परछाई।
यह मन को निर्मल करता है, जैसे गंगाजल पावन,
कट जाते हैं जन्म-जन्मांतर के, बंधन सब पिघलावन।

भजन से आत्मा तृप्त होती, बहती निर्मल धारा,
जहाँ न समय, न मृत्यु का भय, न कोई अंधियारा।
यह साधक को भीतर से, ईश-स्वरूप दिखलाता,
हर प्राणी में प्रभु का दर्शन, सहज स्वयं करवाता।

भजन है साधन, साध्य वही — परम शांति का तीर,
जिसे पकड़ पार उतरेगा, हर जीव का अधीर।
हर सांस में हो नाम बसा, बन जीवन का सहारा,
तब आत्मोथान के द्वार खुलें, प्रेम-भरे आकाश हमारा।

भजन ही जीवन का सार है, आत्मोथान का आधार,
जो अभ्यास करे, जान लेता — यही सच्चा संसार।
भजन में लय, भजन में गति, भजन में प्रभु का प्यार,
भजन ही खोले प्रेम-दीप, जो मिटाए मन का अंधकार।

यजन में है सेवा का भाव, पठन से मिलता है ज्ञान,
जपन में नाम-स्मरण से मन, प्रभु-रस की पहचान।
इन तीनों का सार भजन है, जो जीवन-पथ सँवारे,
भजन ही आत्मोथान का दीप, जो जीवन में प्रकाश करे।

योगेश गहतोड़ी

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