
लेखक: डॉ. गुंडाल विजय कुमार
शिव शंभु करुणा के सागर,
त्रिपुरारी, योगेश्वर नागर।
जटाजूट में गंग बहाई,
भव-सागर से तरण बनाई।।
नभ में डमरू गूंज उठे जब,
नृत्य करे तब काल थमे तब।
भस्म रमाए अशुभ मिटाए,
भोले भंडारी सब सुख लाए।।
त्रिनयन धरे सत्य का प्रहरी,
नीलकंठ विष पिए समहरी।
दया दृष्टि जब तुझ पर होवे,
मन का हर अंधकार रोवे।।
ना मांगूं धन, ना मांगूं वैभव,
दे दे मुझे तेरा चरण सौरभ।
हर हर महादेव गूंजे मन में,
शिवमय होऊँ जीवन क्षण में।।