
माता ते जग है टिका, माता सम नहिं आन।
दूजा गुरु सम नहिं कोई, जगत मातु-गुरु जान।।
माता, गुरु, पितु तीन ये, जग का कर कल्याण।
देंय सुतहिं शुभ ज्ञान जो, करें सदा हित मान।।
जग बैरी यदि हो तेरा, मातु-पिता, गुरु ठौर।
मातु-पिता, गुरु विमुख हों, नहीं ठौर धरु मौर।।
मातु-पिता, गुरु उठ सुमिरि, पद-रज धर उर, शीश।
ले अशीष दोनों समय, समय सके न पीस।।
कठिन करम गति जानिये, गुरु ही लेंय उबार।
बिना गुरू इस जगत में, करें न कोउ उद्धार।।
मातु-पिता, गुरु की प्रबल, महिमा अमित अपार।
सहसानन वर्णन करूँ, तऊ न पावहुँ पार।।
रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)