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कविता- माता-पिता और गुरू

माता ते जग है टिका, माता सम नहिं आन।
दूजा गुरु सम नहिं कोई, जगत मातु-गुरु जान।।

माता, गुरु, पितु तीन ये, जग का कर कल्याण।
देंय सुतहिं शुभ ज्ञान जो, करें सदा हित मान।।

जग बैरी यदि हो तेरा, मातु-पिता, गुरु ठौर।
मातु-पिता, गुरु विमुख हों, नहीं ठौर धरु मौर।।

मातु-पिता, गुरु उठ सुमिरि, पद-रज धर उर, शीश।
ले अशीष दोनों समय, समय सके न पीस।।

कठिन करम गति जानिये, गुरु ही लेंय उबार।
बिना गुरू इस जगत में, करें न कोउ उद्धार।।

मातु-पिता, गुरु की प्रबल, महिमा अमित अपार।
सहसानन वर्णन करूँ, तऊ न पावहुँ पार।।

रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
मऊरानीपुर, झाँसी (उ०प्र०)

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