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हिन्दी गुण गौरव

सरल, सुबोध, सजीव हिन्दी, भावों की अनुवादिनी।
देवनागरी लिपि उजियारी, सुमति-संवेदन वंदिनी॥

लचकीली सी वाणी जैसी, पिघली धूप पवन में।
हर भाषा का सार समाहित, बहती सहज लगन में॥

भारत के कोने-कोने में स्वर सरसाती जाती प्यारी।
विदेशों में भी गूंज रही हिन्दी की मृदु वीणा न्यारी॥

वर्णों की यह लिपि वैज्ञानिक, स्पष्ट उच्चारण वाली।
स्वर, व्यंजन की रचना में, छवि ज्ञान-ज्योति निराली॥

काव्य, कथा, उपन्यास, नाटक, आलोचना की रानी।
भक्ति, श्रृंगार, वीर, हास्य, रस में सदा रही सयानी॥

भावों की यह पावन भाषा, पीड़ा में भी प्रिय सी।
प्रेम, विरह, गर्व, आक्रोश सब कह देती निर्भय सी॥

लोकभाषा को गोद में पाले, ब्रज, अवधी, मिथिलावाली।
बुंदेली, भोजपुरी, मालव, मेवाड़ी, सुर गूँजे भावांजली॥

जन-जन को यह जोड़ रही, भाषा जन मन की बाती।
विविधता में एकता लाई, हृदय से भेद मिटती जाती॥

बच्चों की मुस्कान बने ये, वृद्धों की स्मृति सुहानी।
राष्ट्र धर्म की भाषा हिन्दी, लगे सहज सुख वाणी॥

करते हैं हम नमन इसे, जो माँ सा निज गौरव लाई।
हिन्दी अमर सँवेदन गौरव, गुण वाणी है सुखदायी॥

सृजन प्रयास
पवनेश मिश्रा छतरपुर (मप्र)
(कल्पकथा परिवार)

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