
अपने हुस्न पर वो इतराने लगे।
हर एक बात पर भाव खाने लगे।।
राज दिल में हमेशा छुपाते रहे,
हमें झूठी कहानी सुनाने लगे।
मेरी हर बात पर शक करने लगे,
तरह-तरह से वो आजमाने लगे।
हमसे मुँह फेर कर सो जाने लगे,
हर दिन एक बहाना बनाने लगे।
कोई बात मेरी अब भाती नहीं,
हर एक बात पर रूठ जाने लगे।
रोज नया शगूफा बनाते हैं वो,
सितम पर सितम कर वो सताने लगे।
रोज ताना मारना कहीं ठीक था,
आए दिन अब तांडव मचाने लगे।
कभी बुलातीं थी गुड्डी के पापा,
किन्तु अब नाम लेकर बुलाने लगे।
काम से आते खाना मिलता नहीं,
हमें रोज भूखा ही सुलाने लगे।
मेरी अदा पे जो मरते थे कभी,
हमें निर्धन नकारा बताने लगे।
स्वरचित रचना-राम जी तिवारी"राम"
उन्नाव (उत्तर प्रदेश)