
महादेवी के भाव-सुमन से छायावाद की अलि बौराई।
नीहार झरे युग की व्यथा में, यामा सुधा बनकर छाई।।
सुभद्राकुमारी स्वर में उठती क्रांति ज्वाला ज्वलंत प्रखर।
झांसी की रानी बन जातीं, पद पद पर करती गर्जन-स्वर।।
शिवानी की कथा-कुँवरियाँ कश्मीर से काशी तक जाएँ।
भाव-संवेदना की बूँदें हिन्दी के आँचल में सुगंध फैलाएँ।।
मन्नू की लेखनी कहे, समाज के भीतर की बात।
आपका बंटी रोता है, महाभोज में छुपी सौगात।।
मैत्रेयी पुष्पा की भाषा बोली से रस छिनता है।
अलमा कबूतरी के घर में, समाज पुनः सँवरता है।।
अनामिका की कलम बने, शिला-शब्द की स्वर मूर्ति।
नारी के अंतर्मन को दे नवीन वैचारिक स्वर्णिम सूरत।।
कृष्णा सोबती की लेखन से जीवित होतीं कई कथाएँ।
जिन्दगीनामा में लिपटीं जीवन की सूक्तियाँ पायें।।
चित्रा मुद्गल की लेखनी, मजदूरी का गीत रचाए।
‘आवां’ बनकर जाग उठे जब श्रमिक हृदय मुस्काए।।
रमणिका की लेखनी से दलित और वनवासी स्वर बोले।
संघर्षों की अग्नि से झरतीं, शब्दों में सौंधी खुशबू घोले।।
नमन उन्हें जो नारी स्वर को हिन्दी में दे रहीं गान।
साहित्य की इन देवियों का वंदन सादर आठों याम।।
सृजन प्रयास:-
पवनेश मिश्रा छतरपुर (मप्र)
(कल्पकथा परिवार)