
जब घिर आती है खुशबू बिखेरती
सुरमई शाम,
नज़र आता है हर तरफ अंधेरा।
चहचहाने लगता है
पंछियों का बसेरा।।
तब तुम बहुत याद आते हो।
भंवरे की मानिंद,
मेरे कानों में कुछ गुनगुनाते हो।।
मानो कह जाते हो
हम नदिया के दो किनारे हैं।
पर एक दूसरे के सहारे हैं।।
संध्या दीक्षित