
हुई बारिश चले झरने, नजारा खूब दिखता है
प्रकृति के रंग बदलने का इशारा खूब मिलता है।।
हरियाली छाई जब, गगन कुछ लोहित-सा दिखता,
पानी के बरसने से वृक्षों पर यौवन खिलता।
प्रकृति भी नवबधू-सी, सज-छटा अपनी बिखेर देती,
जल से भरी दिशाए सब, अल्हड़-सी तब लगती।
मेघों के नर्तन का अनुपम इशारा मिलता है
हुई बारिश चले झरने, नजारा खूब दिखता है।।१।।
पानी ऊपर से गिरता, रजत की भाँति झरता,
चमकते बाल-चाँदी से, वृद्धा के सिर सा हिलता,
ऊपर से गिरती बूँदें, मन-मन मे भीतर गूंजें,
शाखों की छाँवों में लगता झरने कोई
राग बुने
हर पत्ता सावन के स्वर में लय करता है
हुई बारिश चले झरने, नजारा खूब दिखता है।।२।।
नव कलियाँ चुपचाप गगन से रस
लेकर हँसतीं,
ओस भरी पंखुड़ियाँ मानो कंचन मे लिपटीं।
कागा कांव काव बोले बादल से मिलने जाता
कोयल जब कूक उठती लगता सावन गीत गाता
सुरभि घुली पवन में जब धरती से चंदन रिसता है
हुई बारिश चले झरने, नजारा खूब दिखता है।।३।।
धूप छनी जब बूंदों से, सतरंगी चित्र बनाती,
इंद्रधनुष की बाँह थाम, धरा को चुपके छू जाती।
कपोलों-सी धरती लगती, वर्षा आँचल फैलाती है
बूँद-बूँद में गीत कोई, मन की बात कहती है।
हर सर्जक मन उस पल भावों से भर उठता है
हुई बारिश चले झरने, नजारा खूब दिखता है।।४।।
पुष्पा पाठक छतरपुर मध्य प्रदेश