
पुंसवन संस्कार करने वाला व्यक्ति शुभ मुहूर्त में नित्य क्रिया संपन्न करके पूर्व मुख बैठकर अपने दाहिने भाग में पत्नी को बैठाकर दीप प्रज्वलित करे, आचमन, प्राणायाम, आसनशुद्धि, करके पुनः संस्कार संपन्न करने के लिए संकल्प करे । उस दिन पति-पत्नी संस्कार होने तक उपवास करें । उसके बाद संकल्प करें, संकल्प करने के बाद मातृपूजा आदि संपन्न करके वटवृक्षके निचले भाग में उत्पन्न अंकुरों तथा वटवृक्ष की शाखाओं के ऊपर अग्रभाग में उत्पन्न नूतन पल्लवों के बीच में उत्पन्न हुये अंकुरों कुश की जड़ तथा दूर्वा लाकर स्वच्छ जल के साथ पीस लें । तथा उस रस को स्वच्छ वस्त्र से छानकर किसी पात्रमें सुरक्षित रखलें और पति, स्त्रीकी नासिकाके दाहिनी छिद्र मे रस डालते समय दो मंत्रों का पाठ करे ।।
ॐ हिरण्यगर्भ समवर्तताग्रे भूतस्य जातः पतिरेक आसीत् । स दातार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम ।।
अद्भ्यः सम्भृतः पृथिव्यै रसाच्च विश्वकर्मणः समवर्तताग्रे ।
तस्य त्वष्टाविदधद् रूपमेति तन्मर्त्यस्य देवत्वमाजानमग्रे ।।
।। वीर्यवान पुत्र प्राप्ति के लिए सकाम प्रयोग ।।
वीर्यवान पुत्र की प्राप्ति के लिए पति जलसे पूर्ण एक पात्रको भार्या की गोद में रखकर अनामिका उंगली से स्त्री के गर्भ का स्पर्श करते हुए निम्न मंत्रका पाठ करते हुए गर्भ का
अभिमंत्रण करे ।
ॐ सुपुर्णोऽसि गरुत्माँस्त्रिवृत्ते शिरो गायत्रं चक्षुर्बृहद्रथन्तरे पक्षौ । स्तोम आत्मा छन्दा’न् स्यङ्गानि यजून्’सि नाम । साम ते तनुर्वामदेव्यं यज्ञायज्ञियं पुच्छं धिष्ण्याः शफाः।
सुपर्णोऽसि गरुत्मान् दिवंगत गच्छ स्वः पत ।।
दक्षिणा संकल्प—
इसके बाद पूजन करने वाले ब्राह्मण को दूसरा देनी चाहिए अथवा यथाशक्ति ब्राह्मणों को भोजन करना चाहिए ।
संकल्प– ॐ अद्य यथोक्त गुणविशिष्टतिथ्यादौ गोत्रः_ शर्मा_ वर्मा__ गुप्तोऽहं कृतस्यास्य पुंसवनाख्यकर्मणः कर्मदा साद्गुन्यार्थमिमां दक्षिणां ब्राह्मणेभ्यो विभज्य दास्ये । यथासंख्याकान् ब्राह्मणान् भोजयिष्ये ।
अभिषेक विधि—
इसके बाद आचार्य कलश के जल से निम्न मंत्रों का पाठ करते हुए अभिषेक करें—
ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः । पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।।
ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्त्रोतसः। सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत्सरित् ।।
ॐ पुनन्तु मा देवजनाः पुनन्तु मनसा धियः । पुनन्तु विश्वा भूतानि जातवेदः पुनीहि मा ।।
{ शु○ या○९। ३०}
अभिषेक के अनन्तर ब्राह्मणों का आशीर्वाद ग्रहणकर मातृगणों का विसर्जन करे,
और —
अनेन पुंसवनाख्येन कर्मणा भगवान् श्री परमेश्वरः प्रीयताम्– कहकर कर्म भगवान को निवेदित कर दे ।।
विशेष बात–
यह पुंसवन संस्कार समयपर न होसके तो सीमंतोन्नयन के साथ करना चाहिए, जैसा कि, बृहस्पति ने कहा है कि यह पुंसवनसंस्कार गर्भ-चलन के पहले न किया गया हो तो भी, गर्भके चलनेपर भी सीमंतोन्नयनके पूर्व अवश्य करना चाहिए । पञ्चांगपूजन तथा हवन आदि कार्य संपन्न करके पहले पुंसवनकी विधि पूर्ण करने के अनन्तर सीमांतोन्नयन की विधि संपन्न करे ।।
सभार– गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार