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पशुपति


देवों के नाथ जीवों के नाथ ,
पशुओं के नाथ कहलाते हो ।
जीव हो क्यों न चाहे जो भी ,
हर जीवों पे दया दिखाते हो ।।
ऊॅंच नीच नहीं तेरी नज़र में ,
हर भक्तों पे तरस खाते हो ।
फॅंसा जो तेरा कोई दलदल में ,
शीघ्र ही दौड़ उसे बचाते हो ।।
सावन माह बना पावन माह ,
हर भक्तों में जोश फैलाते हो ।
तेरी कृपा से तेरे दर्शन होते ,
जब पूरी कृपा ही दिखाते हो ।।
कृपा तेरी जिस पर बरसती ,
घर से उसे तुम तो बुलाते हो ।
भक्त बुलाकर दर्शन कराकर ,
मनचाहा वरदान बरसाते हो ।।
अरुण दिव्यांश
छपरा ( सारण )
बिहार ।

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