
मंगल पाण्डेय स्वतंत्रता सेनानी,
जिन्होंने 1857 के प्रथम भारतीय
स्वाधीनता संग्राम में अंग्रेजों के
विरुद्ध विद्रोही भूमिका निभाई।
वो ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं
बंगाल नेटिव के पैदल सिपाही थे,
तत्कालीन अंग्रेजी शासन ने उन्हें
बागी कह फाँसी की सजा दी।
पर हम सभी हिंदुस्तानी उन्हें
आजादी की लड़ाई के पहले
क्रांतिकारी नायक की तरह
याद कर पूरा सम्मान देते हैं।
1857 की क्रांति मंगल पांडेय ने
अंग्रेजों के खिलाफ बिगुल फूंका,
आठ अप्रैल को ही शहीद मंगल
पांडेय का शहादत दिवस था।
आज़ादी की लड़ाई में तो बलिया
का एक स्वर्णिम इतिहास रहा है,
हर सैनिक की ज़ुबाँ पर उनका
नारा ‘मारो फ़िरंगी को’ ही था।
बैरकपुर के परेड ग्राउंड में मंगल
पांडेय जी को फांसी दी गई थी,
आजादी के कितने परवानों ने
हंसते हुये जान कुर्बान की थी।
भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम
की जब भी कहीं चर्चा होती है,
तो मंगल पांडे का नाम गर्व और
सम्मान के साथ लिया जाता है।
भारतीय इतिहास में यह एक अहं
दिन के रूप में जाना जाता है,
उनका जन्म 19 जुलाई 1827 को
बलिया में ब्राह्मण घर में हुआ था।
22 वर्ष की आयु में उन्होंने 34वीं
बंगाल इन्फैंट्री में सिपाही के रूप में
सेना में प्रवेश कर उन्होंने अंग्रेजों
के खिलाफ वीरतापूर्ण लड़ाई लड़ीं।
आदित्य उनकी वीरता बलिदान
ने भारतीयों के दिलों में आज़ादी
की लौ जलाई और सारे देश में
क्रांति की भावना जागृत की थी।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ