
समाचार पत्र, पटे रहते है खबरों से जाने वह इतना सच कैसे बर्दाश्त कर लेते है,
हमारे यहा तो कोई एक सच कह दे,तुरंत सभी मुँह फेेर भाग लेते है।।
खैर भार भी उन्ही के कन्धों पर है सारा का सारा,
कोई बिका किसी के मोल, कोई देख रहा सब नजारा।।
दस बारह पन्नो का यह वाहक, वैसे ,जान बड़ी रखता है,
उखाड़ देता सत्ता तक,जब सच ,ठान लेता है।।
और वैेसे ,गिरती उम्मीद का ,सहारा भी यहीं है,
और बिका हो गर,तो अवारा भी ,यही है।।
वैसे ,रास्ता है यह ख्याति का,
पर पूछे न इसकी जाति का।।
क्योंकि ,दफन है इसके नीचे, कई ,गौरव शाली इतिहास,
जो बनाते है समाचार पत्र ,और उसकी महिमा को खास।।
दिन पंद्रह अगस्त या गणतंत्र का हो,या सरदार पटेल व गांधी के अंत का हो ।।
सुर्खिया बहुत बटोरता है,
जब होता सावरकर गिरफ्तार या लटकता भगत सिंह फांसी तो मन बड़ा कचोटता है।।
तुम देखना,
कि सरल की कोई कविता तो इसमे नही आई,
यदि आई तो समझ जाना कि सरल ने भी कर ली है कोई कमाई।।
संदीप शर्मा सरल
देहरादून उत्तराखंड