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गुरु, गुरुदेव, सदगुरु और परमब्रह्म

गुरु दीप जलाएं ज्ञान का, अंधियारा सब दूर करें,
गुरुदेव प्रेम की गंगा बनकर, मन में उजास भरें।
सदगुरु खोलें अंतर्मन को, सच्ची राह दिखलाएं,
परमब्रह्म जब मिलें अंत में, जीवन धन्य हो जाए।

गुरु किताबों से आगे हैं, अनुभव का पाठ पढ़ाएं,
गुरुदेव जीवन की पाठशाला, चलना हमें सिखाएं।
सदगुरु मौन में भी मन को गहरी शांति दे जाएं,
परमब्रह्म मन में बस जाएं, हर पल अमृत लुटाएं।

गुरु कर्मों की राह दिखाएं, उचित-अनुचित बताएं,
गुरुदेव बड़े प्रेम से, चेतना से जीवन सुंदर बनाएं।
सदगुरु मोह-बंधन को तोड़ें, ज्ञान का दीप जलाएं,
परमब्रह्म से मिलन हो जब, चिंता सदा मिट जाए।

गुरु समझाएं शास्त्रों को, सच्चाई का मर्म बताएं,
गुरुदेव अमृत वर्षाएं, पीड़ा में भी नित मुस्काएं।
सदगुरु अहम शांत करें, नित कृपा भाव बरसाएं,
परमब्रह्म में जब मन लगे, प्रश्न सभी चुप हो जाएं।

गुरु हमें बाह्य ज्ञान सिखाएं, जगत से जोड़े रखें,
गुरुदेव साहित्य-ज्योति से, चेतन मन सादे रखें।
सदगुरु मिटाएं द्वैत सबका, एकत्व सिखलाएं,
परमब्रह्म से जब हों एक, स्वयं में ईश्वर पाएं।

गुरु जीवन में, सबसे पहले करते विद्या प्रारंभ,
गुरुदेव के उपहार से, मानव का भीगे अंग-अंग।
सदगुरु संग न छोड़ते कभी, चाहे विपत्ति होती,
परमब्रह्म के मिलन से,आनंद की अनुभूति होती।

गुरु सागर हैं शिक्षा के, जो दिशा प्रदान करें,
गुरुदेव ज्ञान की गंगा, जीवन की प्यास हरें।
सदगुरु दीपक आत्मा के, भीतर ज्योति जलाएं,
परमब्रह्म वह रोशनी है, जो चारों ओर समाएं।

गुरु ना हों तो अंधियारा, जीवन अधूरा रह जाए,
गुरुदेव बिना न मिल पाते, साहित्य का साया।
सदगुरु के तत्वज्ञान से, ब्रह्मज्ञान मिल जाता,
परमब्रह्म से मिलन पर ही, हर द्वंद्व मिट जाता।

गुरु हमें जगाएं नित्य, सन्मार्ग पर ले जाएं,
गुरुदेव करुणा बरसाएं, प्रेम की राह दिखलाएं।
सदगुरु अज्ञान हरें घट से, भीतर के द्वार खोलें,
परमब्रह्म के दर्शन से, यह जीवन पूर्णता बोले।

गुरु से आरंभ जीवन का, विद्याज्ञान मिलता,
गुरुदेव प्रेम की बगिया हैं, सरल बनाएं रास्ता।
सदगुरु घट-दीप जलाएं, मिलाएं खुद से खुदा,
परमब्रह्म की अनुभूति से, भ्रम सब जाए सदा।

योगेश गहतोड़ी
नई दिल्ली

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