
!! जातकर्मसंस्कार का परिचय एवं महत्त्व !!
बालक के जन्म होने से पूर्व तीन संस्कार होते हैं— गर्भाधान, पुन्सवन तथा सीमंतोन्नयन ।
सीमंतोन्नयन प्रायः आठवें मासतक हो जाता है, उसके बाद लगभग एक-डेढ़ मास के अनन्तर प्रसव होता है । उसी का नाम जातकर्म है ।
जन्म होने के बाद जो सबसे पहले संस्कार होता है, उसी का नाम जातकर्म है । इस संस्कार के प्रधान उद्देश्यमें बताया गया है कि गर्भस्थशिशु, जो माता के रससे अपना पोषण करता है, उस आहार आदि का दोष जो बालक में आ जाता है, वह इस संस्कार के द्वारा दूर हो जाता है—
गर्भाम्बुपानजो दोषो जातात् सर्वोऽपि नश्यति’ । {स्मृतिसंग्रह}
यह संस्कार केवल पुत्र के उत्पन्न होने पर ही होता है, कन्या के नहीं । महर्षि पारस्कर जी ने अपने गुह्यसूत्र मे लिखा है—
जातस्य कुमारस्याच्छिन्नायां नाड्यां मेधाजननायुष्ये करोतिʼ।
{पा० गुह्य०१।१६।३}
अर्थात् उत्पन्न हुए कुमार {बालक} के नालच्छेदनसे पूर्व ही मेधाजनन तथा आयुष्यकर्म पिता करता है । मनुस्मृति में भी यही बात बताई गई है कि नालच्छेदन के पूर्व ही यह संस्कार करना चाहिए—
ʼप्राक् नाभिवर्द्धनात् पुंसो जातकर्म विधीयते ।ʼ
ऐसा इसलिए की नालच्छेदन के अनन्तर सूतक {जननाशौच} लग जाता है और सूतक में जातकर्म करना निषिद्ध है ।
महर्षि जैमिनि का वचन है—
यावन्न छिद्यते नालं तावन्नाप्नोति सूतकम् ।
छिन्ना नाले ततः पश्चात्सूतकं तु विधीयते ।।
{वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश}
यावन्न छिद्यते नालं तावन्नाप्नोति सूतकम् ।
छिन्ना नाले ततः पश्चात्सूतकं तु विधीयते ।।
पुत्रोत्पत्ति के अनन्तर नालच्छेदन कितनी देर तक देर के बाद होना चाहिए, इस संबंध में निर्यात्मक व्यवस्था में यह बताया गया है कि 12 घड़ी अर्थात् 4घंटे अथवा 16 घड़ी अर्थात् 6.5 घंटे के बाद, नाल काटनी चाहिए । इतने समय में जातकर्म सम्बन्धी कर्म पूर्ण किए जा सकते हैं ।
जातकर्म संस्कार में किए जाने वाले {करणीय} कृत्य—
वीरमित्रोदय-संस्कार प्रकाश में– ब्रह्मपुराण के वचन से बताया गया है कि, पुत्र का जन्म होने पर पितृगण तथा देवता उस घर में प्रसन्नता पूर्वक आते हैं, अतः वह दिन पुण्यशाली तथा पूज्य होता है उसदिन उनका पूजन करना चाहिए और ब्राह्मणों को सुवर्ण,भूमि गौ आदि का दान करना चाहिए । प्रतिग्रह लेने के लिए वृद्धयाज्ञवल्क्य जी के वचन से वहां बताया गया है कि,
कुमारजन्मदिवसे विप्रैः कार्यः प्रतिग्रहः ।
अर्थात् — पुत्र जन्म के दिन जातकर्म संस्कार में ब्राह्मणों को दान लेना चाहिए ।
जातकर्म संस्कार में करणीय कृत्य—
१~ मेधाजनन–
२~ आयुष्यकरण– मेधा जनन कर्म के अनन्तर पिता द्वारा- आयुष्यकरणकर्म किया जाता है, जिससे बालक दीर्घजीवी होता है । आयुष्यकरण के मंत्रोंमें बताया गया है कि, जिस प्रकार अग्नि, सोम, ब्रह्मा, देवता, ऋषिगण, पितर, यज्ञ तथा समुद्र यह आयुष्मान् है, उसी प्रकार उनके अनुग्रह से मैं तुम्हें दीर्घायु से युक्त करता हूं ।
३~ बालकके जन्मकी भूमिकी प्रार्थना–
४~ बालक का अभिमर्शन–
५~ माता के प्रति-कल्याण कामना–
६~ माता के स्तनों का प्रक्षालन तथा दुग्धपान–
७~ जलपूर्ण कुम्भका स्थापन–
८~ सूतिका-गृह के द्वार पर अग्निस्थापन–
९~ बालककी कुमारग्रह आदि बालग्रहों से रक्षा का उपाय–
१०~ नालच्छेदन–
जातकर्म संस्कार कराने हेतु देखें– गीता प्रेस से प्रकाशित, पुस्तक संस्कारप्रकाश में– जातकर्मसंस्कार प्रयोग—
साभार– गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण–
पं.बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार