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षष्ठीमहोत्सव एवं राहुवेध

षष्ठीमहोत्सव एवं राहुवेध– संस्कार का प्रयोजन—

जातक {बालक} के उत्पन्न होने के छठे दिन किया जाने वाला महोत्सव, षष्ठी-संस्कार कहलाता है, इसी के साथ राहुवेधकर्म भी होता है । यह दोनों कर्म जातक की रक्षा के निमित्त किए जाते हैं । यद्यपि इस दिन सामान्यतया जननाशौच उपस्थित रहता है, किंतु गृह्यसूत्रों एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि, प्रथम दिन, छठे दिन तथा दसवें दिन दान देने एवं लेने में कोई दोष नहीं होता । किंतु भोजन करना उचित नहीं है ।।

षष्ठीदेवी का परिचय तथा महिमा—

षष्ठीदेवी कौन है, इनकी क्या महिमा है तथा उनकी पूजा क्यों की जाती है, इस सम्बन्ध में देवी भागवत तथा ब्रह्मवैवर्तपुराणमें बताया गया है की देवी षष्ठी शिशुओं की अधिष्ठात्री हैं । बालकों को दीर्घायु बनाना उनका भरण-पोषण करना तथा सभी प्रकार के अरिष्टों का निवारण करना– षष्ठी देवी का मुख्य विशेषता है । इसलिए बालक के छठे दिन प्रायः रात्रि में प्रसूति गृह में छठी-पूजन संस्कार का विधान प्रचलित है । मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण इन देवी का नाम षष्ठी पड़ा है । यह ब्रह्मा जी की मानस पुत्री एवं शिव-पार्वती के पुत्र स्कंद की प्राणप्रिया देवसेना के नाम से भी विख्यात हैं ।
इन्हें विष्णुमाया तथा बालदा भी कहा जाता है । एक षोडश मात्रिकाओं में परिगणित हैं ।।
भगवती षष्ठी देवी अपने योग के प्रभाव से शिशुओं के पास सदैव वृद्ध माता के रूप में अदृश्यरूप से विराजमान रहती है तथा उनकी रक्षा एवं उनका भरण पोषण करती हैं । बालकों को स्वपन में खिलाती, हँसाती, दुलारती तथा उन्हें अभूतपूर्व वात्सल्य प्रदान करती हैं, इसी कारण सभी शिशु अधिकांश समय सोना पसन्द करते हैं । आँख खुलते ही बालक की दृष्टि से भगवती ओझल हो जाती हैं, अतः शिशु रुदन करने लगता है ।
इन्हीं षष्ठीदेवी का प्रधान पूजन षष्ठीमहोत्सव के दिन रात्रि में किया जाता है । षष्ठीदेवी के पूजन के अनन्तर उनकी प्रार्थना करनी चाहिए ।।
प्रार्थना का भाव इस प्रकार है—
हे षष्ठीदेवी !! सूतिकागृह में निवास करने वाली हैं, आपको नमस्कार है, मैंने उत्तम भक्ति से आपका पूजन किया है, आप दीर्घ आयु प्रदान करें । हे जन्मदे देवी !! आप सभी सुखों को उत्पन्न करने वाली हैं, सभी धन संपदाओं की वृद्धि करने वाली हैं और सभी प्राणियों का हित साधन करने वाली हैं आपको विनय पूर्वक हम नमस्कार करते हैं । प्राचीन काल में आपने जिस प्रकार गौरी के पुत्र शिशु स्कंद की रक्षा की थी, वैसे ही मेरे इस बालक की रक्षा करें । हे षष्ठिदेवि !! आपको नमस्कार है । जिस प्रकार अपने नन्दगोप के पुत्रों– श्रीकृष्ण एवं बलराम की पूतना आदि राक्षसियों से रक्षा की थी, वैसे ही मेरे इस बालक की रक्षा करें ।
हे दुर्गे देवि !! आपको नमस्कार है । सभी प्रकार का सौख्य प्रदान करने वाली हे जीवन्तिके ! हे जगन्माता ! हे परमेश्वरी !! सभी विघ्नों को दूर करके आप हमारी रक्षा करें ।।
इस प्रकार षष्ठीदेवी का पूजनकर अर्धरात्रि के समय राहुवेधन कर्म करना चाहिए । यह कर्म कुलाचर के अनुसार कहीं होता है कहीं नहीं होता ।।

 *।। विशेष बात ।।* 

जन्मदिन की रात्रि तथा छठे दिन की रात्रि बालक के लिए विशेष अरिष्टकारिणी होता है । अतः भूतादि ग्रहोंसे विशेष रूप से रक्षा करनेयोग्य होती है । इसलिए प्रथम दिन जाकर्म तथा छठे दिन षष्ठीमहोत्सव संस्कार किया जाता है । षष्ठीमहोत्सव के सम्बन्ध में बताया गया कि इसदिन रात्रि में पुरुष लोग हाथ में शस्त्र धारणकर तथा स्त्रियाँ गीत-नृत्य आदि के द्वारा रात्रि में जागरण करें । सूतिकागृह को अग्नि, दीपक धूप तथा शस्त्र आदि से सज्जित रखें । चारों ओर सरसों विखेर दें । इस सम्बन्ध में जा केवल की स्मृति में– महर्षि मार्कंडेय जी का वचन इस प्रकार है—

रक्षणीया तथा षष्ठी निशा तत्र विशेषतः ।
रात्रौ जागरणं कार्य जन्मदानां तथा बलिः ।।
*पुरुषाः शस्त्रहस्ताश्च *नृत्यगीतैश्च योषितः।*
रात्रौ जागरणं कुर्युः दशम्यां चावल सूतिके ।।
साभार— गीता प्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर, हरिद्वार

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