
हुए देश में जो ऋषि-मुनि हैं,
सबने शान्त मार्ग दिखलाया।
प्रेम जगत में सबसे प्यारा,
मृदुल स्तम्भ सबने बतलाया।।
प्रेम सकल रोगों की औषधि,
नहीं प्रेम से बड़ा है कोई।
द्वेष-दम्भ, ईर्ष्या की करता,
नाश, क्रोध नासे सोई।।
अगर प्रेम का भाव हृदय में,
जन-जन के उर व्यापेगा।
होगी शान्ति, न लानी होगी,
न हिंसा से कोई काँपेगा।।
राम-कृष्ण ने प्रेम की शिक्षा,
दीन्ही है सारे जग को।
महावीर अरु बुद्ध ने इससे,
किया सुगम जीवन मग को।।
अगर सभी एक ही माने,
रक्खें सबमें समभाव अगर।
अपने-अपने धर्म-कर्म में,
होंय नियत, हो शान्ति डगर।।
आगे बढ़ें, पढ़ें हर बच्चे,
सुख-दुःख में सब साथ रहें।
अनुसूया का व्रत लेकर के,
राम-कृष्ण सा मार्ग गहें।।
नानक व रैदास, कबीरा,
पलटू, मीराबाई ने।
राम भक्ति में रत गाये हैं,
सदा प्रेम के गीत उनने।।
रामकृष्ण जैसे सन्तों की,
वाणी पर विश्वास करो।
जीवन खिलता कमल बनाओ,
हर पल, हर क्षण उल्लास भरो।।
क्रोध-ईर्ष्या-द्वेष, कपट-छल,
त्यागो, ये सब दुश्मन हैं।
इनसे ही आपस के झगड़े,
होते घर में हर क्षण हैं।।
अगर नहीं मन के विकार पर,
अंकुर अभी लगा पाये।
तो फिर जीवन-भर पछताओ,
गुजरा समय न फिर आये।।
लड़ते-लड़ते यों ही इकाई दिन,
सृष्टि नष्ट हो जायेगी।
फिर आकाँक्षा-अभीप्सा मन की,
धरी यहीं रह जायेगी।।
जो है जहाँ, पास है जितना,
उसमें ही सन्तुष्ट रहे।
हाउ-हप्प में और छीन लें,
अधिक चाह में नहीं बहे।।
तो ही शान्ति जगत में होगी,
पैगंबर का ये पेगाम।
प्रेम-भाव से मिल-जुलकर सब,
रहो करो न तुम आराम।।
चलते रहो, करो फिर उन्नति,
जीवन में नव रस भरिये।
सभी राष्ट्र हों सुखी प्रेम से,
मिल आगे बढ़ते रहिये।।
रचना-
जुगल किशोर त्रिपाठी
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी