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कविता

परिस्थिति__ (1)
भरत का राम मिलन वनवास में, श्री राम का राजा भरत को उपदेश, वन्य जीवन सिया, राम, लखन का, राजा दशरथ का सिधारना।
मौलिक लेखन,,संदीप शर्मा।।
वास्ते,,साहित्य कृति।।
राम जी सम है न खुशी न गम है
सिया लक्ष्मण संग किया वन गमन है।।

प्रजा भी सब, बोखला सी रही है,
राम संग वन को जा जो रही है ,
सोच वन के दुख अपार,
प्रजा के लिए राम हो रहे बेहाल।।

कितना स्नेह  राम और  राम जन मे
करो तो भजन ऐसे भाव लिए  मन मे।।
देखना प्रभु फिर कैसे चले आते,है,
समस्या से भी पहले पहुँच खुद आप जाते है।।

ऐसे ही लिए  मन मे भाव
प्रजा  को छोड़कर  चल दिए  वे आप,
सोई प्रजा तो सोई ही रह गई,
राम बिन बिन राम, क्या गति रह गई।।

चले गए  जब वन मे राम,
सुमंत्र को दे आज्ञा विराम।
आगे वे स्व पैदल  ही जाएगे,,
वनवास की रीत मन से निभाएगे।।

देखा राम मे कितना विवेक,
जो आई परिस्थिति, किया कोई न द्वेष,
उल्टे  सब सहर्ष स्वीकारा,
लगाओं तो जरा,जय श्रीराम जी का नारा।।

किए थे वल्कल, तीनो ने धारण,
बीच थी सरयू, का प्रश्न उतारन,
केवट को दे क्या,करते जो सोच धारण,
विचित्र परिस्थिति मे भव कराने वाले.पार तारण।।

सिय जो थी सच्ची आप अर्धांगिनी,
जान गई  प्रभु की लीला मन ही मन पावनी,
तुरंत अंगूठी कर दीनी उस भेंट,
होता आज का समय तो पड़ जाता क्लेश।।

करने लगे चित्रकूट मे प्रभु अब निवास,
भरत को थी लगी राम मिलन की प्यास 
उसके मन मे न कोई भी छल था
वह तो विधान, विधि का ही प्रबल था।।

लिए  सेना को अपनी साथ अपार,
आ पहुँचा वन आप, राम जी का लिए सार,
लक्ष्मण दिखे कौतुक व क्रोध मे
भरत की सेना देख आ गए आवेश रोष मे।।

पर जब गए जान भरत जी का हाल,
गदगद हुए  राम के भक्त वे भाल,
कितना प्रेम स्नेह भाई भाई मे,,
यही है सब रामायण की चौपाई मे।।

भरत ने राम को खूब मनाया,
स्वामी को मनाने गुरू भी था लाया,
जानता था धर्म राम की वह,बात 
ले आया था तीनों माँओं  को भी तभी साथ।।

स्नेह, धर्म, हठ से भी खूब मनाया,
दशरथ के स्वर्ग गमन का संदेश भी बतलाया,
ह्रदय विदारक था वह इक क्षण,
जब अनाथ जान गए पिता गए स्वर्ग सम।।

भारी ह्रदय से मन संस्कार किया,
फिर  मनाने का प्रयास भाई को किया,
भाई का भाई से अटूट था स्नेह,
अजी सभी तो राम जी से.वो थे।।

जब राम जी ने भरत को स्नेह से बताया, रघुकुल का वचन दिए का पाठ  सुझाया,
तो भारी सा करके भरत अपना मन,
ले चले पादुका राम की निभाने को वचन।।

अप्रतिम स्नेह  व धर्म का संवाद था,
राम भरत,लक्ष्मण ने जो रचा स्वांग था।।
था कोई  हरेक, इक दूजे पर भारी
इसी को रामायण रची है सारी।।

देखा प्रभु से मिलने का वह भाव,
वे न भी मिले तो रही चरणन की प्यास,
यही यह परिस्थिति है समझाती,सब आप,
राम राम की दशा धुन राम की गाती गात।।

राम से करिए इतना सब स्नेह,
बैैठ जाए, आकर ह्रदय मे वे,
यही तो रामायण का सब  रमन है
यही वन मन का वन सा गमन है।।

इस परिस्थिति को देते है विराम,
देखते है आगे क्या लिखवाते है श्री राम।।


संदीप शर्मा
देहरादून उत्तराखंड

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