
आज के जादू की दुनिया में,
अब नहीं होते वे आंगन और चौबारे,
जहां मिल जुल कर बचपन हमने गुजारे।
जहां फूटे रागों के धारे,
महलों से भी बढ़ कर थे वह आंगन और चौबारे हैं।
वह मस्ती और धमाल के नजारे,
देखने को नहीं मिलते हैं वह प्यारे।
वह लुकाछिपी खेलना,
रस्सी कूदना, मां के आंचल में डूबना,
अब तो सपने हैं प्यारे।
नहीं मिलते हैं वह आंगन और चौबारे,
महलों से भी बढ़ कर थे वह प्यारे।
सुनहरी यादों के खजाने हैं वह,
मॉल और फ्लैट कल्चर में आ गए अब तो।
माचिस की डिबिया से ठिकाने हैं,
अब तो अपने ही अपनों से बेगाने हैं।
न मिलते अब तो वह आंगन और चौबारे हैं,
लगते थे जो महलों से भी प्यारे हैं।
कैद में मासूम हैं छोटे से परिवार में,
न जाने वह बचपन का ककहरा हैं,
न मिलते हैं वह जादू की दुनिया में,
न वह प्यारी सी परियों की कहानी है,
न सुनते वह प्यारी सी लोरी हैं।
अब नहीं मिलते वह आंगन और चौबारे हैं,
जो लगते थे महलों से भी प्यारे हैं।
अब नहीं मिलते वह आंगन और चौबारे हैं।।
संध्या दीक्षित