
मंगलमय वनचारी शिवजी,
महादेव संसारी शिवजी।
(स्वरचित रचना)
मंगलमय वनचारी शिवजी,
बैरागी, त्रिपुंडधारी शिवजी।
महादेव संसारी शिवजी,
सती-पार्वती के प्यारे शिवजी।
गले में सर्पों की शोभा भारी,
भस्म रमाए तन पर सारी।
करुणा के सागर हैं शिवशंकर,
हर हर महादेव गूंजे अंबर।
कैलास में जो ध्यान लगाएं,
भक्तों के हर संकट भगाएं।
डमरू की ध्वनि सृष्टि रचाए,
तांडव नृत्य अंधकार मिटाए।
वन में रहते, वृक्षों के प्यारे,
मृगचर्म ओढ़े, सहज सहारे।
संसार में रहकर भी निर्लेप,
उनके जैसा नहीं कोई विकल्प।
शिव हैं सृष्टि के आदि अनादी,
कल्याणकारी, करुणा-प्रसादी।
त्रिनेत्रधारी, ज्ञान के दाता,
कालजयी, सब पाप मिटाता।
नीलकंठ विषपान किए थे,
जग के हित सब दुःख सहे थे।
रुद्र रूप में करते संहार,
शिवमूर्ति में छिपा उदार प्यार।
गणों के स्वामी, भूतनाथ,
कभी कृपा, कभी रौद्र रूप साथ।
नंदी की सवारी करते,
भक्तों के दु:ख हर पल हरते।
अभिषेक हो बिल्वपत्र से,
मन जुड़ जाए शिवचरित्र से।
हर मंदिर में वो वास करें,
हर मन को शिव प्रकाश करें।
शिव की पूजा, शिव का ध्यान,
मिलता है हर दुःख से त्राण।
शिव को जो सच्चे मन से पुकारे,
उनके जीवन में सुख ही सारे।
भक्ति से मन पावन हो जाए,
हर स्वांस में शिव बस जाए।
मंगलमय वनचारी शिवजी,
महादेव संसारी शिवजी।
योगेश गहतोड़ी
नई दिल्ली – 110059