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नव दुल्हन सी सज गई

नव दुल्हन सी सज गई
   धरती माता आज।।
  आया मौसम खुशी का,
    क्या है इसका राज।।
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हरियाली की ओढ चुनरिया जब धरती सज जाती है ,
सबके तन मन को  देखो वह नवजीवन दे जाती है।
मन हर्षित है  तन हर्षित है जीवन भी हर्षित है
सुखद वृष्टि हो जाने से तो पृथ्वी भी हर्षित है।।
लगता है् सावन की खुशी प्रकट करती
हरियाली की ओढ चुनरिया धरती मां धरती पर आती।।
खिली खिली सी धुली धुली सी हर डाली लगती है,
पशु पक्षी सब मस्त मगन है जीवन आनंदित है।।
मिलकर खुशियां सभी मनाते वृक्षों
पर हैं झूले
झूल रही हैं नव वधुऐ भी बच्चों के 
जब संग मिले ।।
दूर-दूर तक नजर पसारी सभी जगह हरियाली है,
हरे हरे पत्तों के कारण झुकी हुई हर डाली है।।
झुक कर है यह शिक्षा देती गर्व कभी ना करना
जब जीवन में हो समृद्धि सदा विनत
ही रहना।।
लेकिन सबको एक शपथ है उसको सभी  निभाना
हरी भरी यह रहे वसुंधरा
नित- नित  नव-नव वृक्ष लगाना।।

पुष्पा पाठक छतरपुर मध्य प्रदेश

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