Uncategorized
Trending

अधूरा और अमर प्रेम

प्रेम तो शायद अधूरा ही रहने के लिए शापित होता है। हमारा गौरवशाली इतिहास भरा पड़ा है आधे अधूरे प्यार की कहानियों से। इनमें राधा कृष्ण का नाम सबसे पहले आता है। इसके बाद प्रेम दीवानी मीरा और कान्हा का जिक्र भी किया जाता है। 
                                द्वापर युग में जन्मे श्रीकृष्ण और राधा बाल सखा थे। श्रीकृष्ण और श्री राधा जी के बचपन की बाल लीलाएं और खेलकूद के प्रसंग आज भी भारतीय जनमानस की स्मृति में जीवित हैं। आज भी भारत में लोग श्रीकृष्ण जैसे बालक और श्रीराधा जैसी बालिका की कामना करते हैं। बचपन की परिधि में अंकुरित होते हुए उनके निश्छल प्रेम का बिरवा किशोरावस्था में ही कुम्हला जाता है। मात्र सत्रह वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण के महर्षि संदीपनी के आश्रम में विद्याध्ययन के लिए चले जाने पर श्रीराधा जी अकेली रह जाती हैं। वह अपने बाल सखा श्रीकृष्ण को आजीवन याद करती रह जाती हैं। उधर श्रीकृष्ण जी भी का उनसे मिलना नहीं हो पाता है। श्रीकृष्ण जी का ब्रजधाम लौटना नहीं होता, वह अपने जीवन के उद्देश्यों की पूर्ति में लग जाते हैं। उन्हें तो विधाता ने बहुत महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व सौंपे थे, लोकहित के लिए उनकी पालना आवश्यक थी। फिर श्रीकृष्ण के जीवन में श्रीराधा जी कभी भी लौट ही नहीं सकीं। कहना गलत नहीं होगा कि श्रीकृष्ण के हृदय स्थल से श्रीराधा जी की स्मृति कभी भी मिटी ही नहीं। लौकिक और भौतिक दृष्टि से वह कभी भी नहीं मिल सके, परंतु वह दोनों एक-दूसरे के हृदय में सदा विद्यमान रहे। इस पावन धरती पर उनका लौकिक प्रेम अमर हो गया। आज भी श्रीराधा जी श्रीकृष्ण से पहले ही पूजित, वंदित और अर्चित की जाती हैं। श्रीराधा जी का नाम श्री कृष्ण जी से पहले ही लिया जाता है। कहते हैं कि इसी से श्रीकृष्ण जी प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।

संध्या दीक्षित

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *