
ॐ भूर्भुव: स्व: तत्सवितुर्वरेण्यम भर्गो,
देवस्य धीमहि, धियो योन: प्रचोदयात।
जयति जय गायत्री माता,
जयति जय गायत्री माता,
आदि शक्ति तुम अलख-
निरंजनि जग पालन कर्त्री,
दुःख, शोक, भय, क्लेश,
कलह, दारिद्र दैन्य हरनी ।
ब्रह्मरुपिणी, प्रनतपालनी,
जगतधात्री सुखदा जगदंबे।
त्रिपदा मंत्र गायत्री माँ का,
तीन चरण की माँ की साधना।
आत्मा, शरीर, मन शक्तिवान हों,
करें गायत्री की आराधना।
गायत्री माँ की महिमा में
सब तीनों लोक समाये हैं,
त्रिगुण, ब्रह्मत्रय, त्रिशक्तियाँ
माता की महिमा गाते हैं।
त्रिकालज्ञ गायत्री माता,
आदि शक्ति कहलाती हैं,
त्रिफला माँ से अमृत, पारस,
कल्पतरु भी सब पाते हैं।
माँ गायत्री तत्वज्ञान से,
तीन अनुग्रह भी देती है,
भौतिक, आत्मिक विभूतियाँ
गायत्री माँ से आती हैं।
आयु, प्राण, प्रतिष्ठा, प्रज्ञा,
द्रव्य, पशु व ब्रह्मचर्य भी,
सातों प्रतिफल गायत्री के,
अथर्ववेद ने गाये हैं।
दैविक, भौतिक, अध्यात्म तत्व,
सम्वर्धन गायत्री माँ से होता है,
इन अवरोधों और अभावों
का निराकरण भी होता है।
यह विभूतियाँ पाकर मानव,
सम्पन्न, सुसंस्कृत होता है,
देवत्व प्राप्त करता मानव,
यह शास्त्रों का कहना है ।
गुण, कर्म, स्वभाव सदा मानव,
के कठिन परीक्षा भी लेते हैं,
आकृति नहीं, प्रकृति से मानव,
सारे देवत्व हमेशा पाते हैं।
गायत्री माँ की साधना देवलोक,
को स्वर्ग लोक बतलाती है,
त्रिपदा गायत्री की महिमा,
सुरपुर को स्वर्ग बनाती है।
जयति जय गायत्री माता,
जयति जय गायत्री माता,
आदि शक्ति सुखदायिनी माता,
क्लेश कष्ट निवारिणि माता।
स्वाहा, सुधा, शची,
ब्रह्मानी,राधा, रुद्राणी
आगम निगम बखानी,
तुम ही हो कमला रानी।
अष्टाविंशति मंत्र जाप कर,
माता का ध्यान सभी करते,
आदित्य गायत्री मय होकर,
जयति जय गायत्री जपते।
जयति जय गायत्री माता,
जयति जय गायत्री माता।
डा० कर्नल आदि शंकर मिश्र
‘आदित्य’, ‘विद्यावाचस्पति’
लखनऊ