
1. बूंद-बूंद
बूंद-बूंद से घट भरे, साजे प्रेम विचार।
मन मंदिर में जगमगे, सत्य ज्योति अपार॥
2. नभ अंचल
नभ अंचल जब देखता, शांत हो जाता मन।
गूंज उठे फिर अंत में, ‘ॐ’ का पावन धन॥
3. स्वर्णिम
स्वर्णिम किरणें कह रहीं, प्रभु का है संयोग।
जागो अंतर-ज्योति से, मिटे मोह का रोग॥
4. नखत
नखत नयन में झिलमिलें, सृष्टि करे संवाद।
जिनके अंतर ईश हैं, वे ही जानें नाद॥
5. प्यास
प्यास लगी जो आत्म को, न बुझे जलधार।
हरि-स्मरण की बूंद ही, लाए शांत अपार॥
योगेश गहतोड़ी
नई दिल्ली – 110059