
(नन्ही परी का साहस)
लाल रंग की फ्रॉक पहनकर, एक नन्ही परी थी आई,
फूलों-सी छवि संग लेकर, मानो ऋतु स्वयं मुस्काई।
गूंथे बालों की लटों में, माँ की ममता की थी छाया,
लाल गुलाबी छतरी थामे, सावन ने हर्ष जताया।
काले बादल छाए नभ में, बरस रही थी बूँदों की धार,
नन्हीं परी साहस से, अकेले चलने को थी वह तैयार।
पीली मिट्टी की पगडंडी, पाँव पड़े फिर भी दुबारा,
रुकी नहीं वो एक न क्षण भी, मन में था उजियारा।
गड्ढों में भर पानी देखा, छप-छप करती जाती,
बूँदों संग वो हँसती-खिलती, आनंदित हो मुस्काती।
दोनों ओर हरियाली थी, पीली पगडंडी एक न्यारी,
पेड़ झुके स्वागत में जैसे — “आओ, परी हमारी प्यारी!”
छतरी पर जब बूँदें गिरतीं, बज उठता साज सुहाना,
मौन मुस्कान में छिपा था, मन का मधुर तराना।
नीला नभ और घने थे बादल, किंचित भी भय न लगता,
नन्हीं-सी परछाईं चलती, साहस साथ में जगता।
जब दूर कहीं दिखी झलक-सी, इक कुटिया नारंगी रंग,
मन में सोचा — “यहीं बिताऊँ, इस रैन को संग-संग।”
भीतर दीपक झिलमिल करते, ममता-सी लहर समायी,
वर्षा की उस भीगी साँझ में, आशा दीपक-सी मुस्काई।
योगेश गहतोड़ी