
विधा- बाल-गीत/बाल-कविता
आ गया सावन महीना,
सुखी सब नर-नारि हैं।
गीत हर्षित गा रहे सब,
झुक रहीं तरु डारि हैं।।
इसी सावन में सुनहरा,
परम पावन भाये है।
भाई की चमके कलाई,
भाई यश को पाये है।।
राखी का त्योहार धीरे,
पग-धवनि कर आ रहा।
संकेत उसके मिल गये,
ये सभी को हरषा रहा।।
बहन है पुलकित बहुत,
खुशियाँ कई ज्यों पायी हों।
कर रही घर की सजावट,
ज्यों खोयी निधियाँ आयी हों।।
सभी खुश हैं दस दिशाएँ,
प्रकृति में चहुँ शोर है।
बरसते बदरा बहुत हैं,
नृत्य करता मोर है।।
पुष्पों की मँहगीं सुगन्धें,
फूल-फल अति फर रहे।
डालियाँ भारों से झुकतीं,
हर्ष में सब भर रहे।।
रचनाकार-
पं० जुगल किशोर त्रिपाठी (साहित्यकार)
बम्हौरी, मऊरानीपुर, झाँसी