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ग़ज़ल

जहाँ पर मौज -मस्ती कम रही।
वहाँ पर ज़ोर ,हस्ती कम रही।

हमें जिसकी ज़रूरत ख़ास थी,
वही इक चीज़ सस्ती कम रही।

कमी थी इंतज़ामों की तभी तो,
कभी गाँवों में बस्ती कम रही।

वही बातें नहीं रख पाई दमखम,
कि जिनको सर-परस्ती कम रही।

वक़्त पर हो सकेंगे काम कैसे,
अगर ये ज़बरदस्ती कम रही।

नवीन माथुर पंचोली
अमझेरा धार मप्र

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