
रिश्ते अब रहें कहां उलझ कर गांठों में मौन हो गए,
स्वार्थ का सब ताना बाना रिश्ते अब व्यापार हो गए।
मतलब के सब नाते जुड़ गए निकला मतलब सब अजनबी हो गए,
एक –एक इंच टुकडा धारा का भाई– भाई में बैर का सबब बन गए।
रिश्ते अब रहे कहां उलझ कर गांठों में मौन हो गए।
अपना स्वार्थ लिए सब प्रेमी हो गए बिन स्वार्थ मां बाप भी पराए हो गए,
भाई से भाई अब जुदा हो गए राखी के धागे भी कच्चे हो गए,
रिश्ते अब रहे कहां उलझ कर गांठों में मौन हो गए।
लड़ी थी सावित्री जिस सिंदूर की खातिर वो अब पल भर के मेहमान हो गए,
सात जन्मों के रिश्ते भी समझौते हो गए प्रेम के नाम पर सब बेईमानी हो गए,
रिश्ते अब रहे कहां उलझ कर गांठों में मौन हो गए।
मामा , चाचा, ताऊ ये नाम अब पुराने हो गए घर अब मकानों में तब्दील हो गए,
पिरोए जो एक माला में सब मोती धागा अब वृद्धाश्रम हो गए,
रिश्ते अब रहे कहां उलझ कर गांठों में मौन हो गए।
विद्या बाहेती महेश्वरी राजस्थान