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अन्नप्राशन संस्कार

अन्नप्राशन संस्कार
!! अन्नप्राशन संस्कार का समय तथा उद्देश्य !!

उत्पन्न हुए बालक को प्रथम बार सात्विक पवित्र मधुर अन्न खिलाना– अन्नप्राशन संस्कार कहलाता है ।
अन्न कब खिलाना चाहिए इसकी जिज्ञासा में पास्कर गृह्यसूत्र में बताया गया है कि, बालकजन्म के छठे मास में अन्नप्राशन संस्कार करना चाहिए ।
व्यास स्मृति और आयुर्वेद में भी यही समय दिया गया है । षन्मासं चैनमन्नं प्राशयेल्लघु हितं च ।
{सश्रुत० शारीर० १०।४९}
बालिका के लिए भी अन्नप्राशन का यही समय कहा गया है ।
इस संस्कार के करने से माता के आहार से गर्भावस्था में मलीनता भक्षणजन्य जो दोष शिशुपर आ जाता है, उस दोष की निवृत्ति के लिए हवन पूर्वक पवित्र हविष्ययान्न तथा मधु घृतयुक्त पायस बालक को दिया जाता है, जिसके ग्रहण करने से बालक का शरीर एवं अंतःकरण दोषरहित होकर पवित्र हो जाता है । इसी बात को स्मृति संग्रह में इस प्रकार कहा गया है– अर्थात छठे मासतक शिशु की शारीरिक संरचना ऐसी रहती है कि वह माता के दुग्ध अथवा गोदुग्धपान से ही शरीर-पोषण के लिए सभी आवश्यक तत्व प्राप्त कर लेता है, किंतु अब शरीर की तीव्रता से वृद्धि होती है और इसके लिए दूध पर्याप्त नहीं होता । अतः उसे अन्न आदि ठोस आहार ग्रहण करने की आवश्यकता होती है । दूसरी बात यह है कि, प्रायः इसी समय बालक के दांत भी इसलिए निकलने लगते हैं ताकि वह ग्रहणकिए जानेवाले अन्नको धीरे-धीरे चबाने में समर्थ हो जाय ।
यह सब भगवान की अद्भुत लीला है ।
अन्न ग्रहण प्रारंभ करने से शिशु अब धीरे-धीरे माता के स्तन्यपर आश्रित ना होकर स्वावलंबी भी होने लगता है । अन्नप्राशन से शिशु के मुख से स्तनपानजन्य गन्ध भी धीरे-धीरे दूर हो जाती है । इस प्रकार अन्नप्राशन संस्कार संस्कार का बड़ा ही वैज्ञानिक रहस्य है । इस संस्कार से जातक की दैहिक पुष्टि और उसके ओजकी वृद्धि होती है ।।
अन्नप्राशन संस्कार में बताया गया है कि, अन्नप्राशन पूर्ण होने पर के अनन्तर बालक के सामने पुस्तक, शस्त्र, लेखनी, वस्त्र अन्न तथा शिल्प की वस्तुयें में रखनी चाहिए । तदनंतर माता को चाहिए कि अपनी गोद से बालक को उतार कर उन वस्तुओं को दिखाएं और बालक जिस वस्तु को अपनी स्वेछासे सर्वप्रथम ग्रहण करे, उसीसे उसकी जीविका चलेगी यह समझना चाहिए ।।
इसके बाद आवाहित देवी-देवताओं का विसर्जन कर ब्राह्मणों को यथोचित दक्षिणा देकर बंधु-बान्धवों सहित स्वयं भी भोजन करे ।।
इस प्रकार के मांगलिक कृत्यों द्वारा अन्नप्राशन कर्म संपन्न करना चाहिए ।।

ध्यान रहे– आपको केवल संस्कार के महत्व के बारे में जानकारी दी जा रही है । संस्कार करने हेतु– {देखें} गीताप्रेस की पुस्तक– संस्कारप्रकाश

साभार— गीताप्रेस गोरखपुर
लेखन एवं प्रेषण—
पं. बलराम शरण शुक्ल
नवोदय नगर हरिद्वार

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